गोरों का प्रभुत्व | Goaro Ka Prabhutav

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Goaro Ka Prabhutav by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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4५ न संसार का च०-विभाग बस्ती का चार पंचमाश रोक रखा है | या यों कहिए कि यदि सौ दी गोरे हैं ओर उनके पास सो ही मील भूमि हे, तो अस्सी गोरे तो केवल चीस मील से भी कम स्थान में रहते हैं और बाकी बीस गोरों ने अस्सी मील भूमि रोक रखी है । किस लिए १ इसलिए कि उनकी ही सन्तान वहाँ रहे, वहाँ को उपज से लाभ उठावे और अन्य वर्णा के लोग वहाँ घुस न सके ! यही ह गोसे का श्रसद्य प्रभुव्व ! यही है उनका असद्य बोझ ! हम ऊपर कह चुके हैं कि संसार में गोरों के अतिरिक्त पीत, धूम्र, कृष्ण ओर रक्तये चार बण हैं और इन सत्र की जन-संख्या २,९०,० 2,००,००० है। इनमें से सत्र से अधिक संख्या पीत ৪ वर्ण के लोगों की हैँ जो ५०,००,००,०० से भी कुछ ऊपर ही हैं । उनका निवास-स्थान पूर्वी एशिया है । इनके वाद धूम्र वर्ण या गेहुएँ रंग के लोग हैं, जिनकी संख्या ४५,००,००,००० के लगभग है । ये लोग दक्षिणी तथा पश्चिमी एशिया ओर उत्तरों आफिका में बसे हुए हैं। कृष्ण वर्ण के लोगों की जन-संख्या १०,००,००,००० के लगभग है ओर उनका मुख्य निवास-स्थान आरफ्रिका के प्रसिद्ध सहारा रेगिस्तान का दक्षिणी भाग है । इनमें से कुछ लाग दक्षिण एशिया ओर उत्तर तथा दक्तिण अमेरिका के ब॒ुछ्द ग्थानों में भी बसे हुए हैं। रक्त वण के लोगों की संख्या फेवज चार ही दररोड़ है और वे अमेरिकन संयक्त राज्यों के दक्षिण में निदास दरते है | इधर बहत दिनों से सोरों की आवादी मभं.पण रूप से बढ़ रहो धी, पर शरव लक्षणों से जान पड़ता है कि उनकी वृद्धि रुक ही है ओर अन्य दरों के लोगों की आदादी दद रही है । इधर 1?




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