श्रीजवाहर किरणावली [किरण 1६] | Shri Jawahar Kirnawali [kiran 16]

Shri Jawahar Kirnawali [kiran 16] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ € | विष-फल ही लगते है । इसी भाति अभिमान रूपी बेल का फल भी कटुक ही होता है । राजा रावण अहकारी और अभिमानी होने के साथ उम्र मे भी बडा है | ऐसी स्थिति मे उसके साथ राजकुमारी का सम्बन्ध जोडना योग्य नहीं है । इसके अतिरिक्त रावण पहले ही विवाहित है और उसकी पत्नी मौजूद भी है। एक पत्नी की मौजूदगी मे अपनी कन्या देना अनुचित है । जिसके एक पत्नी मौजूद हो, उसे अपनी कन्या नही देनौ चाहिए, यह कथन क्या आप युक्तिसगत समते है? आज तो लोगो को यह्‌ बात कटक जान पडती है मगर वह समय दूर नही जब आज जो बहुविवाह की प्रथा प्रचलित है यह समूल नष्ट हौ जायगी । जो प्रथा कानून से मजबूर होकर छोडनी पडी, उम्नको स्वेच्छा से त्याग देना ही योग्य है । सभाजनो मे से दूसरे सदस्य ने पूर्वोक्त सदस्य का समर्थन करते हुए कहा-वास्तव में राजा रावण के साथ राजकन्या का विवाह करना उचित नही है । हा, रावण की अपेक्षा उसके पुत्र मेघनाद के साथ सम्बन्ध करना ठीक होगा । । तीसरे सदस्य बोले जब बाप ही योग्य नही है तो बेटा कंसे योग्य हो सकता है ? जसा वाप वेसा बेटा, यह लोकोक्ति तो प्रसिद्ध ही है। जब बाप अहकारी है तो उसका बेटा भी अहकारी हो यह स्वाभाविक है । अतएव मेघनाद के साथ विवाह-सम्बन्ध करना भी मुभे ठीक नही जचता । विदयुतप्रभ के साथ सम्बन्ध करना मेरी सम्मति , मे ठोक होगा । विदयुत्प्रभ त्यागशील ओर सदाचारी हे।




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