काजीरंगा में आखिरी दांव | Kaziranga Me Aakhiri Daanv

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Kaziranga Me Aakhiri Daanv  by श्री अरूप कुमार दत्त - Shri Arup Kumar Dutt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहले उसी ने आवाज लगाई, तुम दोनो यहा आकर देखो, यह क्‍या है ?” वै लपककर जोन्ती के पास पहुचे । उसने उन्हें गेदे की लीद के ढेर पर आदमी के पैर का निशान दिखाया । “बस इतना ही,” धनाई ने कुछ निराशा से कहा, “उनमे से किसी आदमी का पैर लीद पर पड गया होगा ) केवल एक निशान से ती किसी को नही पहचाना जा सकता है ?” “जरा गौर से देखो, धनाई ,” जोन्ती ने उसका ध्यान फिर निशान की भोर आकपित करतें हुए कहा, “यह दाहिने पैर का निशान है और उसमे अगूठा नही है ।” यह सुनकर वे दोनो उत्तेजित हो उठे । निशानो के लिए जमीन की ओर ध्यान से देखते हुए वे आगे वढने लगे। शीघ्र ही जोन्ती की तेज आखो ने वैसे ही दो निशान और देखे | उनमे से किसी व्यक्ति का पेर लीद मे सन गया होगा । इसलिए उसके चलने से जमीन पर निशान बनते चले गये थे । जो निशान लडको को मिले थे वे सब एक ही जैसे थे । उन सब में ही पैर का अग्ूठा गायब থা। “इससे खोज करने मे हमे वडी मदद मिलेगी, है न ?” जोन्ती ने दरुसरो को वताया । “यह्‌ स्पष्ट है कि उस भिरोहुमे एक्‌ आदमी के दाये पैर का अगूठा गायब हे ।” जौन्ती कौ इस खोज से धनाई ओर बुबुल बडे प्रभावित हुए । बुबुल बोल उठा, “बहुत अच्छे । यह एक महत्वपूर्ण प्रमाण हो सकता है ।* तूफान अब उनके सिर पर था। पछाही हवा के झोको में वर्षा की भीनी-भीनी गव्ध आ रही थी । 19




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