अलोचना के प्रगतिशील आयाम | Alochana Ke Pragtisheel Aayam

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Alochana Ke Pragtisheel Aayam by शिवकुमार मिश्र - Shivkumar Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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18 : आलोचना के प्रगतिशील आयाम ये सारी बातें भाववादी दाशंनिकता के आवरण मे वस्तुत: उन आधुनिकतावादियों को घाते ह, जिनके विए बाहरी वास्तविकता का कोई मूल्य नहीं है। लेनिन का उपत सिद्धात्त बाह्य वास्तविकता का अवमूल्यन करने वालो हर विचारघारा पर प्रहार करता है, तथा इस बात पर आग्रह करता है कि रचताकार सामाजिक विकास के वस्तुनिष्ठ नियमो के तहत उभरपने वाली बाहरी वाघ्तविकता को उसकी प्रतिनिधिकता से उसके सारतत्त्व के साथ पहचाने तथा उसकी संगति में अपनी कला में उसके स्वरूप को कला रचना की अपनी विशिष्टता के दीच चित्रित करे। रचना के अन्तर्गत चित्रित वास्तविकता बाहरी वास्तविकता से अलग न होकर उसती का कलात्मक रूप होती है। वह उसकी प्रतिकृति न होकर भी उसी का प्रातिनिधि छूप होती है। लेनिन इस बात के प्रति भी हमें मुखातिब करते हैं कि কলা सौम्दयंबोध के साथ-साथ हमें वास्तविकता का संज्ञान भी कराती है, कि उसके अन्तर्गत वस्तुगत यधार् की सच्चाई इस रूप में उभरतो है कि उसके माध्यम से हम न केवल अपने समय और समाज को पहचान पाते हैं, उसे बदलने को दृष्टि भी पाते हैं। तोल्सतोय के 'यरुद्ध और शान्ति उपन्यास को इसी क्रान्ति को दपण उन्होंने इसी अर्थ में माना है। साहित्य के विचारधारात्मक महत्त्व के पूरी स्वीकृति और उसे पूरी अहमियत देते हुए भी, स्वहारा के हित में साहित्य की पशक्षघरता की पूरी हिमायत करते हुए भी, साहित्य को सामाजिक बदलाव के लिए संपर्षरत ताकतों के हाथ का हथियार कहते हुए भी लेनित साहित्य और कला की अपनी विशिष्ट प्रकृति, उसके अपनो विशिष्ट रचना नियमों और उसकी सापेक्ष स्वायत्तता को एक क्षण के लिए भी नही भ्रूलते, वरन्‌ उन्दे रेखाक्ित करते हैं । साहित्य एवं कन्ना सम्बन्धी उनके विचार दस नाते भो विशेष अर्येवान ह कि लेनिनने उन्हे वास्तदिक~जीवन स्थितियो के बीच से पाया है। पाक्सं और एंगेल्स की कला तथा साहित्य सम्बन्धी अवधारणाएँ लेनिन की व्याब्याओ के अन्वर्गंत अपनी समूची ऊर्जा के साथ व्यक्त हुई हैं तथा बुर्जुआ सोन्दयंशास्त्रियों के लिए सबसे कढित चुनौतो सावित हुई हैं । लेनिन के साथ हो इस क्रम में हम प्रसिद्ध माक्सवादी कला विचारक लूमाचरस्की का कुछ जिक्र करना चाहेंगे। लूनाचरस्की के साहित्य और कला सम्बन्धी विचार इस अर्थ में विशेष गुल्यवान हैं कि अक्तूबर क्राति की सफलता के उपरात्त सोवियत रूस की नई रचनाशोलता के सामने आई नई चुनोतियों के वीच दे सामने आए | लूनाचरस्की पर निश्चित रूप से प्लेखानोव के विचारोंकी ग़हरी छाप है, फ़िर भी, आगे चलकर माक्स ओर एंगेल्स के सोन्दर्यशास्त्रीय चित्तन को प्लेखानोव की समाजशास्त्रीय अवधारणाओं की तुलना में उन्होंने अधिक महुस्व दिया गौर सदसे महत्त्वपूर्ण काम यह किया कि उन्होंने साहित्य प्रमोक्षा के कुछ बहुत टोस प्रतिमानों को सामने रखकर समकालीन समीक्षा




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