समाजशास्त्रीय चिंतक एवं सिद्धान्तकार | Samajshastriya Chintan Evam Sidhantakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
474
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विभ्रमित होने के बाद 192 मे वे पुन प्रौकर्टं लौट आये ओर कात एव प्रायड एर डौ
लिट करने के लिये कार्य करने लगे। किन्तु सन् 1931 में उनके प्रथम शोध प्रबंध के
अस्वौकाए किये जाने के उपणन्त उन्दने दूमय शोध प्रबंध कीकेंगार्ड पर लिखा जो मन् 1933
में उस्ती दित प्रकाशित हुआ जिस दिन हिटलर मे जर्मनी के शासन की बागड़ोर सभाली |
जैसे ही उनके इस शोध प्रबंध को स्वोकृत्रि मिली, वे मैक्स होर्खाइमर के निदेशक बनने के
याद 'सामाजिक शोध के फ्रैंकर्फ्ट स्थान” में आ गये। नाजीवाद के बचने के लिये सन्
1934 में यह सस्थान ज्यूरिद आ गया और आडानों इग्ल॑ण्ड आ गये । सन् 1958 में वे पुन
इसी सस्थान मे आ गये जो तब तक अमेरिका पहुँच गया था और यहा उन्होंने पॉल
लेजार्सफ्रेड के सानिष्य में एक रेडियो रिस्र्द प्रोजेक्ट पर कार्य किया। अमेरिका में रहते हुए
उन्होंने कई अन्य शोध योजनाओं पर भी कार्य किया। मित्र राष्ट्रों को विजय के बाद वे पुन
पश्चिमी जर्मनी लौट आये और फ्रैंकफर्ट शोध सस्यान के तत्कालीन निदेशक होर्खाइमर के
मेवानिवृत होने के बाद वे इस सम्थान के मन् 1959 में निदेशक बन गये।
आडोर्तों, सप्राजशासियो के दीच, आधुनिक सप्राज की 'जतपुज सस्कृति' (मॉस
कल्चर) की अपनी आलोचनाओं के लिये सुप्रसिद्ध रहे है। उन्होंने इस सम्कृति को
भास्कृतिक उद्योग का कार्य और जनसपृष्ठ के जोड़-तोड़ की उपज माना है। उन्होंने एक स्थान
पर सकेत दिया है कि सास्कृतिक उद्योग के भीतर हमारी नई सास्कृतिक प्रदावली दुर्भे् हो
जाती है। নি से जुडे हुए 'ब्राण्ड' (लेबल) ऐसी ही दुर्भेद पदावली है। ये पदावली उन
चीजों पर कोई गेशनी नहीं डालती जिन पर ये दिप्रकी होती हैं। ये वस्तुओं से हमारे सत्य
सबधों के खिलाफ पर्दे का काम करती है। वे सामाजिक कर्त्ता और भोक्ता के वौव भेद मिटा
देती है। आडानों आगे कहते हैं कि उपभोक्ता-पूजीवाद में बिना सोचे-विचारे चीजों জী
स्वीकृति विज्ञपन को स्वय “समग्रतावादी' बना देता है। आधुनिक समाज की आलोचनाओं
में उन्होंने जनसचार के साधनों वो अपना मुख्य निशाना वनाया क्योकि इमौ के द्वा
व्यक्तियों के एक ऐसे 'जनपुज समाज' (पास सोसाइटी) की रचना होती है जो दमनात्मकता
और यथास्थितिवादी व्रि मानवीयता को प्रोग्साहित करता है।
आधुनिक सस्वृति के विश्लेषण में आडो्ों ने एक ओर अस्तित्वाद कौ व्यक्तिपरकता
से, तो दूसरो ओर विज्ञानवाद की वस्तुपरक्ता से बचने का प्रयल किया है, किनु जैसे-जैसे
वे आधुनिक विश्व के प्रति नियशावादी होते गये, उन्होंने अपने विचारों में सशोधन किया।
आधुनिकता के बारे में उनका सर्वाधिक स्पष्ट वक्तव्य हमें उनकी पुस्तक 'मिनिमा मोग़्लिआ'
(1951) में देखने को मिलता है जो मूक्नियों का एक सकलन है।
आइडेरनो आधुनिक 'आलोचवात्पक मिद्धान' (क्रिटिकल विओ) के प्रणेा रहे है।
उनकी प्रमुख रुच आमूल परिवर्दन ऐडिकल चेंज) में थी, किन्तु उन्होंने अनुभववाद
(इम्परिसिजम) और कठोर एवं अनम्य वैज्ञनिक विधियों को आमूल परिवर्तन उत्पन करने के
लिये अनुपयुक्त माना है। उन्होंने इस মাই में लिखा है कि अब तक सभी दार्शनिक
तत्वमीमासा और ज्ञानमीमामा के क्षेत्र किमी ऐसे नितात आद्य तर्क को खोजने में लगे रहे हैं
जिमके आधार पर सम्पूर्ण सृष्टि का विश्लेषण किया जा सके, विन्तु उनका यह प्रयास निर्र्धक
रहा है क्योंकि ज्ञान के क्षेत्र में ऐसा कोई मूल तर्क सभव हो नही है। यही नहीं, यह प्रयास
खतरनाक भी है क्योंकि यह मानव को जड़ वस्तु बना कर सभी को एक ही ढांचे में ढालने
की कोशिश है जो सर्वाधिकारवाद (ोटैलिटेरिअनिजम) और दमन की प्रवृत्ति को बढावा देती
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