जैन तत्त्वादर्श (1936) एसी 1304 | Jain Tatavadharasha (1936)ac 1304
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
662
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आत्माराम जी महाराज - Aatmaram Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(८)
भगवद्ीता और आत्मपुराण की रचना दौली को देखे।
इन में काश्य रचना ओर विषय निरूपण पक ही धकार
की पद्धति का अनुसरण किया, गया, है, : इस लिये प्रस्तुत
ग्रन्थ की रचनारोली में विभिनज्नता दोने पर भी उस की
उपादेयता में कोई अंतर नहीं पड़ता ।
ग्रंथ की प्रमाशिक्ता- , ^
प्रस्तुत ग्रन्थ में जितने भी विषयों का निरूपण किया
जया है, और जिसे अंश तक उन का विवेचन किया है, थे सब
प्रामाणिक जैनाचार्यों के ग्रन्थों के आधार से किया गया है,
और उन प्राचीन शास्त्रों के आधार के बिना प्रस्तुत ग्रन्थ
में एक बात का भी उल्लेख नहीं, इस स्यि प्रस्तुत ग्रन्थ
की प्रामाणिकता में अशुमात्र भी सन््देद करने को
स्थान नहीं ।
श्रथ की उपदेयता-
प्रस्तुतं प्रथ का रचनासमय मी एक विचित्र समय
था, उस समय सांप्रदायिक संघर्ष आज़ कल की अपेत्ता
भी अधिके था । एक सम्प्रदाय वाखा दुख सम्दाय पर
आक्षेप करते समय सभ्यता को भी अपने हाथ से खो बेठता
था । तात्पर्य कि उस समय साम्प्रदायिक किचारों का प्रवाह
जोर शोर से बह रहा था। और कभी २ वो तटस्थ विचार
वालीं की भी पगड़िये उछ्ाली जाती ,र्थी- + ऐसी दशा में
एक सुधारक धर्माचाय को किन कठिनाइयों का सामना
फरना पड़ता दोगा, इस की कल्पना सहज. ही में की जा
सकती है । इस के अतिरिक्त उस काख में जैन धरम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...