प्रबोधसुधाकर | Prabodh Sudhakar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)লিল
इआ दै, फिर भी मनुष्य बाहरसे इसपर अगरु, चन्दन ओर कपूर
आदिका लेप करता है !
यत्रादस्यपिधत्त खामाविकदोषसडूगतम् ।
ओपाधिकगुणनिवह प्रकादायञ्छाघते मूढः ॥२३॥
मृढ पुरुष इसके खाभाविक दोर्पोको यत्पूर्वक छिपाता है,
और औपाधिक ( ऊपरी ) गुणोको प्रकट करता इआ इसकी
प्रशंसा करता है ।
क्षतमुत्पन्नं देहे यदि न प्रक्षाल्यते त्रिदिनम् ।
तत्रोत्पतन्ति बहवः कृमयो दुर्गन्धसद्भीणों: ॥२४॥
शरीरम यदि थोडा-सा धाव हो जाय ओर उसको तीन
दिन मीन घोया जाय तो दरगन्धकरे कारण उसमें बहुत-से कीडे
पड जाते हैं ।
यो देहः सप्तोभूत्सुपृष्पशय्योपशोभिते तल्पे ।
सम्प्रति स रज्जुकाष्टेनियन्त्रितः क्षिप्यते वह्नीं ॥२५॥
देखो, जो शरीर अति खुशोमित फ्रलोंकी सेजपर छुखपूर्वक
सोया हुआ था वह अब रस्सी और काठसे जकड़ा जाकर अभ्निमे
फेंका जा रहा है !
सिहासनोपविषटं दृषा य॑ मुदमवाप लोकोऽयम् ।
त॑ कालाकृष्ट तनुं विलोक्य नेत्र निमीलयति ॥२६॥
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