सतकनामा पंचम कर्मग्रंथ | Shatkanama Pachanma Kamargranth

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Shatkanama Pachanma Kamargranth  by डॉ. वल्लभदास तिवारी - Dr. Vallabhdas Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रसावना कर्मग्रन्थ ट्वितीय विभागलु नवीन संस्करण--आ विभागमां तपागच्छीय मान्य आचायैप्रवर श्रीदेवेन्द्रघरिकृत स्वोपश्ञ टीकायुक्त शतक नामना पांचमा कर्मभन्थनों अने आचाये श्रीमलयमिरिक्रत टीकायुक्त सित्तरि नामना छट्ठा कर्मग्रन्थनों समावेश करवारमों आव्यो छे|। आ बन्ने य सटीक कर्ममन्थोने बीजा विभाग तरीके प्रसिद्धिमां छाबषबा माठेनो यश वर्षों अगाड श्रीजैनधमेप्रसारकक समा-भावनगरे प्राप्त कर्यो छे । आजे ए प्रकाशन अल्भ्य होवाथी अमे एने बीजी बार प्रकाशमां लाववा प्रयत्न करीए छीए। आ वखतना भ्रकाश्चनमां संसोधनकायैमाटे प्राचीनतम ताडपन्रीय अने काग्छनी प्रतोनो उपयोग करवा उपरांत टीकाकारो टीकामां बद्धुत करेखा प्रमाणोनां स्थलोनी नष अने प्राकृत पाठोनी छाया पण आपषषामां आवी छे । आदिमां अने अंतमां कर्मघ्रम्थना अभ्यासीओने अतिडउपयोगी विषयानुकम, परिशिष्ट वगेरे पण জাথআানা आन्यां छे, जेनो परिचय आ नीचे कराववामां आवे छे । करम्रन्थनां परिशिष्ट आदि--आ विभागना अंतमां अमे चार परिशिष्ट आष्यां छे । पहेला परिशिष्टमां टीकाकारोए टीकामां उद्धृत करेलां आगमिक तेमज शास्त्रीय गद्य-पद्म प्रमाणोनी अकारादि क्रमथी अनुक्रमणिका आपी छे, बीजा-बत्रीजा परिशिष्टमां टीकामां आवता ग्रन्थों अने प्रन्थकारोनां नामोनी सूची छे अने चोथा परिशिष्टमां पांचमा-छट्ठा कमैप्रन्थर्मा तेमज तेनी टीकामां आवता पारिमाषिक शब्दोनो कोष ( जेनी व्याख्या आदि मूढ के टीकामां होय ) स्थव्छनिरदेशपूर्वैक आपवामां आव्यो छे । आ उपरांत आ विभागनी श्चरुआतमां विषयानुक्रमणिका पष्ठी अमे “ पृद्कमंग्रन्था- न्तर्गतविषयतुल्यतानिर्देशकानां दिगम्बरीयशाख्रमध्यवर्तिनां स्थलानां निर्देशः ” ए मथा नीचे छए कर्मप्रन्थमां गाथावार आबता विविध विषयों समानपणे के विषमपणे दिगम्बरीय श्ासलोमां कयां क्यां आवे छे तेने रगती एक अतिमहस्वनी नष आपी षे । आ विद्रत्तापूण नोध दिगम्बर जैन विद्धान्‌ न्यायतीये न्यायश्ञास्त्री पं० श्रीमहेन्द्रकुमार महाशय तैयार करी छे | आ नोंध कर्मपन्थना विशिष्ट अभ्यासीजओने एक नवीन भागैनुं सूचन करे छे । अमे इच्छीए छीए के आ गौरवभयौ संम्रदनुं कमेविषयक साहित्यना विशिष्ट अभ्यासीओ ध्यानपूैकं अवलोकन करे । कमग्रन्यने अंगे अमारं वक्तव्य--श्रीआत्मानन्द्‌-जैनप्रन्थ-रत्नमाङाना यख्य संचाढक अने एना प्राणस्वरूप पूज्य गुरुवर श्रीचतुरविजयजी मद्दाराजे स्वसम्पादित कर्मग्रन्थना प्रथम विभागनी प्रस्तावनामां आचाये श्रीदेवेन्दधद्चरि भने तेमना नव्य परदे




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