प्राकृत व्याकरण | Prakrit Vayakarana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) चक्रवाक आदि चे बातचीत करते हए महाराष्ट्री ओर अपश्चंशाका भी योग किया हे ! चौथे अङ्कके ६, ११९, १४, १९, २०, २४, २८, २९, २५, २६, ४१, ५३, ५४, ५९, ६३, ६८, ७१ ओर ७५ संस्यावाङे श्छोकां को महारष्टरी तथा १२, ४३, ४५, ४८ भौर ५० संख्यावारे कोकों को अपभ्रंश भाषा में कहते हैं। यथा-- राजा--मम्मररणिअमणोहर ए; कुसुमिअतरुवरपज्नविएु। दइआविरहुम्माइअओ; काणणं भमइ गहंदओ ॥? [ मर्मररणितमनोहरे कुसुमिततरुवरपन्नविते । दयिताविरहोन्मादितः कानने अमति गजेन्द्रः॥ ] (-विक्र० ४1३५ ). हउ पई पुछिछुमि अख्खहि गअवरु; ललिअपहारे णासिभतरुवरु । दूरविणिज्ञिअ-ससहरुकन्ती, ट्टी पिञ पद्रं संमुह-जन्ती ॥ [ अहं स्वां एच्छामि अआाचच्व गजवर; रुकितप्रहारेण नारित तस्वर । दूरविनिभ्जित-शशधर-कान्ति्ष्टा प्रिया सया ससुखं यान्ती ॥ ] पिछले पृष्ठ के व्रर्णित दोनों श्छोक क्रमशः महाराष्ट्री और अपश्रंश भाषा के हैं। | कब्चुकी की बोली संस्कृत भाषा में पाई जाती है। इसका पाठ. सभिज्ञानशाकुन्तछ, विक्रमोचशीय, उन्तररामचरित, प्रतिमा, सुद्रा- राक्षस, मारलविकाभिमित्र तथा वेणी-संहार आदि नाटकों सें आया है। अतीहारी, चेटी, तापसी आदि की वोली शौरसेनी सें है । ये पात्र... प्रायः सभी नाटकों में आये हैं। दौवारिक की भाषा भी शौरसेनी ही... ...« “ पाई जाती है। परन्तु कंसवध में हेमाङ्गदं नामके एक दौवारिक ने. - ` ~“: , , एक स्थान पर एक श्लोक संस्कृत में भी कहा है। सुभद्वाहरण, - . 2 4৫ | 4 अभिज्ञानशाकुन्तल आदि अनेक नाटकों सें दौवारिक का पाठ है।. ` | ০৯ न „` , अभिज्ञानशाकुन्तछ में रक्षियों ( सिपाहियों ), -घीवर ओर, 5 ' -शकुन्तला के पुत्र क्री; -चारुदत्त मे शकार की; , खच्छुकटिक मे .खकारः „` चेट, चारुदृत्त के पुत्र, संवाहके, ओर भिद्ध-की; वेणीसंहार मे राकसः 7:




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