फिसले पाँव | Phisle Paanw

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Phisle Paanw by मौलाना अबुल कलाम आजाद - Moulana Abdul Kalaam Ajad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सके बाद श्या हुप्ा २? उह সুরা के नाम पर उलभाकर चला प्राया । प्रव शायद प्रिसिपल किसी आलिम या मौलवी को बुलाकर जानकारी प्राप्त करेगा । 'मौलदी गडण्ड न कर दे । शमा ने शवा व्यक्त की । ননী, ননী | हमने जो कुछ किया है घम सम्मत है झौर हम हर तरह से सुरक्षित है । देखना, भावरा नाम काटना तो दूर उलटे हमसे खेद प्रकट करेगा | खैर तौलिया दो में नहा लू ।! प्रदर रला है” शमा ने उसके कपडे तह करके प्रलमारी में रसे । बह बाथरूम मे घुसकर नहाने लगा। तो उसने पत्रिका उठा ली। पर मन नही लगा । कॉलेज में उसको लेकर जो बातें हुई वे साधारण तो न थी। भ्रव वह किस मुंह से जायेगी वहाँ ? सहेलियाँ क्या-क्या नहीं पूछेंगी। लोग कनश्षियों से घूरेंगे ओरे प्राध्यापक गण ? उनसे वह क्लास में जिरह कर सकेगी । शमा का मन कडुवा हो गया । क्‍या यह सब उचित हुआ ? “मुतता को शायद धार्मिक मा-यता हो पर यह सामाजिक भी है या नहीं ? उसे तब क्या हो गया थां। क्यो नही पहले ही इतना विचार क्या। भब ? बह बीते दिना वे बारे मे सोचने लगी । प्रह पझगस्त की पूव सध्या | कालज मे विविध सास्कृतिक कायक्रमो का आयोजन था। जैदी तथा शमा ने एकामिनय प्रस्तुत विए और खूब वाहवाही लूटी 1 इक्वाल जैसा गम्भीर प्रकृति वाला शायर भी जब उदें बचाई दने लगा तो दोनो कृताथ हो गए। इकबाल निस्स देह ऊँचा और श्रच्छा शायरथा। बहुत जनदार कविठा करता था 1 मव अगला कोयक्रम कविता, पाठ ही का था । इकवाल तटस्थ रहने वाला सजीदा प्रशिक्षणार्थी था ग्रौर लडकियों से सुदंव अलग व यथासम्भव दूर रहने का आदी लगता था । बहू बोला--यार सरवरद, तुम झोर शमा की जोडी ने कमाल कर फिसले पाँव/17




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