बंधस्वामित्व तीसरा कर्मग्रंथ | Bandhswamitva Teesra Bandh
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सकता है और त्दुस से | इसी कारण पहले कर्मप्रन्थ में
कर्म के स्वरुप का तथा उस के गरक का बुद्धिगस्य बुन्
क्रिया है!
कर्म फे खरप ओर प्रकारो फो जानने कै वाद यह प्रश्न
होता कि क्या कदाप्रहि-सत्यायद्ी, अजितेन्द्रिय जितिन्दिय,
अशान्त-शान्त और चपल स्वर सय प्रकार फे जीव अपने
अपने मानस-केत्र में कम के वीज कौ घरावर परिमाए में हो
समह करते ओर उनके फल थो তার হর हैं या न्यूनाधिक
परिमाण में ? इस प्रन का उत्तर दूसरे कर्ममन्थ मे दिया गया
है। गुणरयान के अनुसार प्राणीवर्ग के चौददद विभाग कर के
अत्येक विभाग की कम विषयक चयय-उद्य-उदोरणा-सत्ता--
सम्बन्धिनौ योग्यता का वणेन किया गया दै । जिस प्रकार
भर्येवं गुखस्यानवाले उनेक शरीरधारियों फी वर्म-चन्ध आदि
सम्बन्धिनी योग्यता दूसरे कर्मग्रन्थ के द्वारा माछम की जाती
है इसी प्रकार एफ शरीरधारी फो फर्म-बन्ध-आदि-सम्पन्धिनो
योग्यता, जो भिन्न मित्र समय में आध्यात्मिक उत्तप तथा
अपरुप के अनुसार वदलतो रहती है उस का ज्ञान भी उसके
द्वारा किया जा सकता है। अतएव भत्येक विचारशील अणी
अपने या अन्य फे आध्यात्मिक विफास के परिमाण या शान
करफे यद्द जान सकता दे कि मुझ में या अन्य में किस क्सि
प्रवार के तया कठिने फर्म के बाघ, उदय, उदीरण और सत्ता
की योग्यता है।
दक्त प्रफार या ज्ञान होने के थाद फिर यह प्रश्न होता
है कि क्या समान शुशस्थान वाले मिन्न भिन्न गति के जीव
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