दान कथा | Daan Katha

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Daan Katha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दानकथा | [ १५ तिस दीरधफर आयु, रहै जन जगतमंश्चारी -बहूुरि रुहे चित स्वाथ, इष्ट आदिक सब नाद होय निरोग शरीर, सदा आनंद प्रकशि । चावे धन अरु घान्य, संपदा वषु निर्मल आति। बहुरि लहे शिवथान, देय जो भेषज नितप्रति | दोहा । सो यह ओपघदान शुचि, दीजे पात्रनहेत । दयासहित श्रम दारकें, जो पावों सुखखेत॥ जिन जिन जीवन फल लही, भेषजदान सदेय तिनकी महिमा प्रयु विना, जगे को दरनेय । पद्धरी । अब इसहाके सनवंधमझार । श्रीवृषसे- 'नाको चरितिसार। पूरवअनुस्तार कहूँ बनाय । 'कृल्याणहेत सनो चित्त लाय ॥ इस अन्तर ये ही भरेतकषे्र । आ्रीजिनके जन्मथकी पित्र । तह कमलजुक्त सुन्दर विशेष । जनप्रद नामा है एक देश ॥ कानेरी पचन तासु मद्ध । दप उग्रसेन नागा प्रसिद्ध । सब विद्यामंडित अव-




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