मणिभद्र - नाटक | Manibhadra - Natak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1015 KB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भभम | ११
नत
जी! इसे अच्छी तरह ভিভাটেমা, মানা হাছয়াঘ গীত
कराक्ञातिमं शमी न रखियेगा।
एस्ताद-पेसा हो होगा भाषकी इस डके मदर्य पिष
अद्वितीय कर दूंगा, किसी भी प्रफार कसर ते रप्यूगा |
प्रगंग०-में घापले दिशेर पया कह, यह आए द्वीकी उडदी है
आए असा जाने सिधाश्येगा|
उस्तार--आप फ््यों फिक्र करती हैं | में इस आपकी शडकीको
नम्र सोपि ही पला इना दगा जिसरे सपरा एठरी न
पिकी |
प्रनगण~पुके भौ पेद ই আমীর है ( पुपतिककारे ) सीधे
पह भौ उस्ताद वृणी क्पे पवि सोढ ।
सताद्- एष्यति $ दीक वेह अप पर ) मेरे सामने देख
और मैं कैसे बोछू' तू भी वैसे ही बे । हां कह, सा, रे, प,
म,प, ध, ती, सा पुति पेता दी कती है)
नि, थ, १, मे, ग, रे; सा ( पुणतिलदा भी वदी एती दै)
सार, रेप, गार, मष, पधनी, घरीछा।
।पुषगिलक्ा म यही बोली है)
सफष, निधप, ध, पम, मगरे पका,
ह (पुघ मी कहती है )
জাতী জাজ रे सांम्ररिया तुम पर वार्ता रे ॥
( पुघण सी (सी प्रद्चाश कहती है )
বাহবা रे, तुए पर वारणा रे, बारी जान र सामिरिण तु
पर घारना रे | ( छड़की भी: )
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