पुण्य कीर्तन प्रथम भाग | Puniya Kirtan Pratham Bhag

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Book Image : पुण्य कीर्तन प्रथम भाग  - Puniya Kirtan Pratham Bhag

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कपिल मुति ७ प्रपंच किया गया है और पातब्जल दर्शन भी इसरो कारण से प्रवचन कहा जाता दै । सांख्य दर्शन में ईश्वर नहीं माना गया है। एक पूकार से इस दर्शन में ईश्वर का खंडन किया गया है। श्रत इस दर्शन का दूसरा नाम निरीश्वर सांस्यदशंन भी है] विक्षान भित्तु फहते हैं. कि सून्रकार का तात्पय ईश्वरखएडन में नहीं है। सूत्रकार का तात्पय केवल इतनाही है कि ईश्वर के न मानने पर भी विवेक साक्षात्कार के दारा मुक्ति हे।ने में कोई बाधा नहीं हाती। यदि ईश्वर का खण्डन करना सूध्कार का अभिप्राय होता ते वे ईश्वरासिद्ध:” জুস ল , बना कर “ईश्वराभावात्‌” सूत्र बनाते। वाचस्पति मिश्र : इस- बात फो नहीं मानते | उनके मत से सांख्य दर्शन निरी- श्वर दर्शन दै। मदपिं कपिल के शिष्य आखुरि और आखरिके शिष्य पञ्चशिख श्राचार्य ने सांख्य दर्गन के वहुत से गूल्थ बनाये हैं। पर इस समय वे सव मून्थ लुप्त हा गये हैं । उनमें बहुतों का इस समय पता मिलता भी कठिन होगया है । ईश्वर कृष्ण ने “ साख्यकारिका › नामकं गृन्थ वनाया हे । यह गृल्थः प्रामाशिक श्रोर उत्तम समा जाता है । इस समय खख्यदुरशन ই জা सूत्र पाये जाते हैं उनको पेता कारिका का श्ादर धाचीन श्राचायां ने भी श्रधिक किया है। भगवान शंकराचार्य मे सांख्यदर्शन के मत खण्डन करने कै समय सूर को छोड़कर सांख्य करिका ही उद्धत की है। इससे यह बात स्पष्ट मालूम पड़ती है कि भगवान्‌ शंकराचार्य के मत से प्रचल्लित सांख्यसूत्रों की श्रपेत्षा




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