चरित्र - निर्माण | Charitra - Nirmaan

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Charitra - Nirmaan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवृत्तियों का संयम्‌ : चरित्र का आधार १७ बुद्धि का वरदान मनुष्यमात्र को प्राप्त है । किन्तु प्रतिष्ठित-ग्रज्ञ, या स्थितप्रज्ञ वही होगा, जिसकी प्रवत्तियां उसके वश मे होगी । इस तरह को सबल प्रज्ञा ही आत्म-निणंय का अधिकार रखती है । यही प्रज्ञा है जो परिस्थितियों कौ दासता स्वीकार न करके मनुष्य का चरित्र बनती है । जिसकी बुद्धि स्वाभाविक प्रवत्तियों विषय-वासनाओं को वश मे नहीं कर सकेगी, वह्‌ कभी सच्चरित्र नहीं बन सकता ।




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