परमात्मा मार्ग दर्शक | 1851 Shri Patmatam Marg Darshak
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
518
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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इस ग्रंथके कर्ताका सिप्र जीवन चरति.
माखाड देशके मेढते शहरके रहीस, मदरमार्गी बडे साथ ओसवाल
[सीया गोतके, भाई कस्व॒खैदजी व्यापार निमित्ते मारवाके
$ आटे भाप आ श्ये, उनक्न अकस्मात् आयुष्य प्रण होनेसे उनके
४ कीसुपत्नी जवाराबाइन वैराग्य पाकर र पुत्रि छोड सादमागीं ज
टन पथमे दीक्षा री, ओर १८ वै तक सेयम पाला. मातापिता ন দ.£
त्म के पियोगकी उदासी से डेट केवल्चदजी मोपार शसं अ.
दे, ओर पिताक धपीदुसार मंदीमपीयोके पंच प्रतिक्रमण, नव स
एण, पूना आदि कंग कयि. उस वक्त श्री छवी ऋ्षिनी महा-ई
६ राज भोपाल पधारे, उनका व्याख्यान छुननेकी भाई फूलचेंदजी था-
ढीवाल केवलचेदजीको जबरूस्तीसे के गये. महाराज श्रीने सुयग ¢
४ डाँगजी सूत्रके चठ॒र्य उदेशकी दशमी गायाका अर्थ समझाया. जि के
से उनको व्याख्यान प्रतिदिन धुननेयी इच्छा हुई. शनेः शनेः पर ६
# तिकरमण. पच्चीस बोलका थोक इत्यादि अभ्यास करते २ दिक्षा ठे
४ नेका भाव हो गया. परंतु भोगावली कमेके जोरसे उनके मित्रोंने ज |;
६ बरदस्तीसे हखासावाइके साथ उनका ल्म र दिया. दो पुत्रको छो
&ड वो भी आयुष्य प्रण कर गइ. एत्र पलानाथै, सम्बन्वीर्योकी परर ¢
गाते तीसरी वक्त व्याव करनेके ल्म माखाड जाते, रसते पज्य शी ५
उदेसागरजी महारजके दशन करनेको रतलाम उतरे, वहाँ बहुत शा
& के जाण, भर यूवानीमें सजोड शील्बत धारण करनेवाले भार् ङ- ९
& सतनी रसोढ केवचेदजीफ़ो भिरे. वो उनको कहने छो कि, “वि.
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