परमात्मा मार्ग दर्शक | 1851 Shri Patmatam Marg Darshak

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1851 Shri Patmatam Marg Darshak by लालाराम नारायण जी - Lalaram Narayan Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হর श < +र ग উর ই হন তু ইভ কক্ষ एप फछक कक ५ 59 इस ग्रंथके कर्ताका सिप्र जीवन चरति. माखाड देशके मेढते शहरके रहीस, मदरमार्गी बडे साथ ओसवाल [सीया गोतके, भाई कस्व॒खैदजी व्यापार निमित्ते मारवाके $ आटे भाप आ श्ये, उनक्न अकस्मात्‌ आयुष्य प्रण होनेसे उनके ४ कीसुपत्नी जवाराबाइन वैराग्य पाकर र पुत्रि छोड सादमागीं ज टन पथमे दीक्षा री, ओर १८ वै तक सेयम पाला. मातापिता ন দ.£ त्म के पियोगकी उदासी से डेट केवल्चदजी मोपार शसं अ. दे, ओर पिताक धपीदुसार मंदीमपीयोके पंच प्रतिक्रमण, नव स एण, पूना आदि कंग कयि. उस वक्त श्री छवी ऋ्षिनी महा-ई ६ राज भोपाल पधारे, उनका व्याख्यान छुननेकी भाई फूलचेंदजी था- ढीवाल केवलचेदजीको जबरूस्तीसे के गये. महाराज श्रीने सुयग ¢ ४ डाँगजी सूत्रके चठ॒र्य उदेशकी दशमी गायाका अर्थ समझाया. जि के से उनको व्याख्यान प्रतिदिन धुननेयी इच्छा हुई. शनेः शनेः पर ६ # तिकरमण. पच्चीस बोलका थोक इत्यादि अभ्यास करते २ दिक्षा ठे ४ नेका भाव हो गया. परंतु भोगावली कमेके जोरसे उनके मित्रोंने ज |; ६ बरदस्तीसे हखासावाइके साथ उनका ल्म र दिया. दो पुत्रको छो &ड वो भी आयुष्य प्रण कर गइ. एत्र पलानाथै, सम्बन्वीर्योकी परर ¢ गाते तीसरी वक्त व्याव करनेके ल्म माखाड जाते, रसते पज्य शी ५ उदेसागरजी महारजके दशन करनेको रतलाम उतरे, वहाँ बहुत शा & के जाण, भर यूवानीमें सजोड शील्बत धारण करनेवाले भार्‌ ङ- ९ & सतनी रसोढ केवचेदजीफ़ो भिरे. वो उनको कहने छो कि, “वि. षका प्या सहज ही रया, तो पुनः उस দু 2৮৮৪৪ মাক ৫ 8898%258৮855889885 ঠা ঠা রর के টস উকি পপ পপ এ केक: 9४9 चैः নি पवन ৯ भः




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