समीचीन धर्मशास्त्र | 1877 Sameecheen-darmshstra; (1955)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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No Information available about जुगलकिशोर विमल - Jugalkishor Vimal
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
পথটি
ग्रन्थ-परिचय
स्वामि-समन्तमद्राचा्य-अणीत इस समीचीन-धर्मशासत्रमे
भावर्कोको लसय करके उस धर्मका उपदेश दिया गया दै जो कर्मो-
का नाशक है और संसारी जीवोंको संसारके दुःखोंसे निकालकर
उत्तम सुखोंमे धारण करनेवाला अथवा स्थापित करनेवाला है ।
वह घमं सम्यग्दशेन, सम्यणञान श्नौर सम्यकचारित्रस्वरूप हे
श्नौर इसी कमसे आराधनीय दै । दशंनादिककी जो स्थिति इसके
प्रतिकूल है--सम्यकरूप न होकर मिथ्यारूपको लिये हुए है--वही
अधमे है और वही संसार-परिश्रमणका कारण है, ऐसा आचार्य-
महोदयने भरतिपादन किया है ।
इस शास्त्रमे घर्मके उक्त ( सम्यग्दशनादि ) तीनों अंगोंका--
रनत्रयका--ही यत्किचित् विस्तारके साथ वर्णन है और उसे
सात अध्ययनोंमें विभाजित किया है । प्रत्येक अध्ययनमे जो
कुछ वर्णन दे उसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है--
प्रथम अध्ययनमें सत्या्थ आप्त आगम और तपोभृत् ( गुरु )
कें त्रिमूहताराहित तथा अष्टमद्ह्दीन और अष्टअंगसहित श्रद्धान-
को “सम्यग्दर्शनः बतलाया है; आप्त-आगम-तपस्वीके लक्षण,
लोक-देव-पाखंडिमूढताओंका स्वरूप, ज्ञानादि अष्टमदोंके नाम
और निःशंकितादि अष्ट अंगोंके महंत्वपूर्ण लक्षण दिये हैं। साथ
ही यह दिखलाया है कि रांगके विना आप्त भमगवानके हितोपदेश
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