वैश्य वर्ण धर्म मीमांसा | Vaishya Varna Dharma Mimansa

Vaishya Varna Dharma Mimansa by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(५३) हैं। और उसी हिसावमे यदि भिन्न भिन्न जातियोके लये লাই জা तो यतुष्योंके लिय भी असख्य हींस- कतीहें परन्तु जनेडक समय उपदेशके कामकी तो उनमेंते एक भी नहीं है । भ. १.७ अनक हैं ओर अनेक अव भी वन सकतीं इममे क्या प्रमाण है । ड. समंत्रमहोंदधि आदि मंत्रशारुत्र ओर पंचरात्रादि तंत्रशास्त्र इनमें जिन जिन देवी देवताओंके प्रयोगाउुछानाद लिख उन्ही उनकी गायत्री भी लिग्वी हैं सो उन्हीं ग्रेथोंमेंसे निकाज्न कर २४ गायत्रीमात् अलग छपवादी ह । इसलिये चहुत गायत्री होनेका यही दृढ भमाण है । परन्तु यह गायत्री वेदमाता नहीं हैं इसलिये यज्ञोपवी- तमें इन्होंका उपदेश नहीं होसकताहे । अब भिन्न भिन्न जातियोंके लिये मिन्न * पका रकी गायत्री ओर वन सक्ती हैं इसकी भी युक्ति सुनिये । ऐसी मायन्नी वनानेका यह नियम है कि उसी आपी वेदमाता गायत्रीके समान सीन पद्‌ आठ + अक्तरोंके वनावे जिसमें भथम पद तो संदेवके लिये यह ( तत्पुरुषाय विद्महे ) एक सधमानही जोड़े अथवा जिस जातिकी অলাঈ তল जातिका पांच अज्षर युक्त चतुथ्यन्त नाम रखके उसके आगे विद्मह्े जोड़ दे सो प्रथमपद वन जायगा। ऐसेही जधती जातेका नाम ( दूसरा ) पांच अत्तरक। ही चतुथ्येत रख कर आगे धीमहि जोडदे स्तो दूसरा पद वन जायया और फिर उसी जांतिकां तीसरा नाम प्रथमांत दो अक्षरका




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