भारतीय व्यापारियों का परिचय भाग - 3 | Bharatiy Vyapariyon Ka Parichay Bhag - 3

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Bharatiy Vyapariyon Ka Parichay Bhag - 3 by चन्द्रराज भंडारी - Chandraraj Bhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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না कि कराँची करोची-जिला प्रात की सीमा भौर परिस्थिति--~- इस जिले का क्षेत्रफल ११९७० वगेमील है। इसके उत्तर मे लरकाना, पूवे मे सिंधु नदी ओर हैदराबाद जिला, दक्षिण में समुद्र और कोरो नदी तथा पश्चिम में समुद्र तथा लालबेला रियासत ( बिलोचीस्थान ) हैं। इस जिले में पहाड़ विशेष हैं। इसकी प्रधान नदी सिंधु ओर हाब हैं। पानी की यहाँ बड़ी कमी रहती है। खेती प्रायः बरसाती पानी ही से होती है। यहाँ का जंगल बड़ा मनोहर है। इसके कोटरी ताटका के लखी नामक स्थान पर गरम जल के तथा गंधक के भरने निकलते हैं। यहाँ बहुत से यात्री यात्रा के निमित्त आया करते हैं। इसी प्रकार इस जंगल में और भी कई स्थानों पर कई सुन्दर दृश्य देखने को मिलते हैं। इस जंगल में आम, बेर, सेव, अंजीर, आदि भी पेदा होते हैं पर ज्यादा नहीं। ये सब यहीं खप जाते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ लकड़ी भी होती है जिसमें खासकर बबूल विशेष होती है । छवारा ओर 2106} मी यदहौँ साधारण पैदा होते है । पहाड़ी स्थानों में यहाँ के जानवर, तेंदुआ, हिरन, खरगोश, सियार, लोमडी, भेड़िया आदि है। मगर भी यहाँ के तालाबों एवं सिंधु और हाब नदी तथा बड़ी २ नहरों में पाये जाते है । यहाँ की आबहवा समुद्र का खुला हुआ किनारा होने से अच्छी है। यहाँ बरसात की ओसत बहुत कम है। मानमंड में वषों करीब ५ इंच होती है तथा कराँची तालछुका में ९ इंच तक हो जाती है | यही यहाँ की वषों का एवरेज है । कराँची जिले का इतिहास--- इस प्रांत का इतिहास उस समय सेशुरू होता है जब कि ग्रेट एलेक्शेंडर हिन्दुस्थान को विजय करने के लिये भारतवर्ष में आया था। उसने परसियन गरफ के रास्ते यहीं से अपना सम्बन्ध स्थापित किया था । सन्‌ १०१९ और १०२६ के वीच महपूद गजनवी यहाँ आया; उस समय इस श्रदेश पर सुमा राजवंश का राज्य था। इस राजवंश का प्रथम ন্‌




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