अथ दुर्जनकरिपञ्चानन | Ath Durjankaripanchanan

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Ath Durjankaripanchanan  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'दुर्जवकरिपश्चानन । १७ ब्राह्मण सृतजीसे धर्म श्रवण किये इन प्रमाणन से ब्राह्मणते और जातिभी ज्ञान उपदेश हो सकते हैं ब्राह्मणके सिवाय दूसरी जात आचार्य नहीं हो सकते यह कहाहे तिसका यह अभिप्राय है किजो ूरवजन्पयें ज्ञानी होके कोह परारब्यवश नीचजाति . पवि तौ ओ आचाय हो सकतारै भौर दूसरा नहीं हो सकता जो पूछे हो कि तुम्हारे मतमे शठकोप आचाये भए हें सो उसका उत्तर सो नित्यमुक्त ठोकरक्षाके लिये अवतार लिये हैं सो योगिनसे भी अधिक हैं जो धर्मव्याधादिकसाई आचाये भये तब शठ्कोपको आचार्य होने में क्या संदेह है ब्राह्मण सिवाय इसरा जाति आचाये नहीं होता हे यह वचनका घमव्याधादिके विषे जेसा संकीच करते हो वैसे उनसे भी अधिक शठकोप है उनसेसी संकोच करनाचाही पसे मदा




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