कविकंठाभरण | Kavikanthabharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ यथा चेतद्धाठश्चक्रगटस्य | अव यह वाक्य मुक्ताकण के वथा रनर. - ४” इत्यादि उदाहरण-छोक दिये जाने के वाद आया हुआ है। अर्थात्‌ इस वाक्य म प्रयुक्त हुए 'एतद? पद का अन्वय करना हे सक्ताकण शब्द ই साथ। इससे यह सिद्ध होता है कि, चक्रपाल मुक्ताकण का भाई था, नकि क्षेमेन्द्र का। यदि चक्रपाल क्षेमेन्द्र का भाई होता तो क्षेमेद्ध अपने भाई का নিইহা “अस्मद्भातुश्रक्रपाल्स्! इन शब्दों में करता, जैसा कि उसने अपने उपाध्याय गड़क का उल्लेख ओचित्यविचास्वर्चा* में किया हे । क्षेमेन्द्र अपने को 'सर्वमनीपिशिप्य*? कहता है, जिससे पता चलता है कि उसका अध्ययन अनेक गुरुओं की अध्यक्षता में हुआ था । क्षेमेन्द्र ने अपने गङ्गक, अभिनवगुप्त तथा सोमपाद नामक तीन गुरुभं केः उल्लेख स्पष्टतया किये हैं। उनमें से गल्जक से क्षेमेन्द्र ने किस विषय की शिक्षा प्राप्त की इसका कोई पता नहीं चलता । अभिनवगुस्त ने क्षेमेन्द्र को साहित्वशास्त्र पढ़ाया | सोमपादर क्षेमन्द्र के आध्यात्मिक गुर रहे होंगे। क्षेमेन्द्र के पिता प्रकादेन्द्र कट्टर शव थे, यह हम ऊपर के आये हैं। क्षेमेन्द्र के एक गुर अभिनवरुप्त कच्मीरी दोवदयान क एक ग्रसुख आचार्यं थे । इस प्रकार रवं पिता के पुत्र आर यैव दार्शनिक केः शिष्य होते हुए मी क्षेमेन्द्र अपने अनेक ग्रन्थों मं विप्णुस्तुति करते हैं। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि, भागवताचार्य सोमपाद का क्षेमेन्द्र पर गहरा असर पड़ा था क्षेमेन्द्र ने बृहृत्कथामंजरी लिखकर खिस्ताव्द १०३७ मे लेखनकार्य का श्रीगणेश किया | उस बृहत्कथामंजरी म॑ वे 8. “यथाएरमदुपाध्यायगन्नकस्य 0--औषचित्यविचार चर्चा, कारिका २. द्रष्व्य--ओऔचित्यविचारचर्चा, उपसंदार्झोक २। ३, 'श्रत्वाभिनवगुप्ताय्यात्साहित्व॑ वोधवारिधिः । आचायंशेखरमपेविद्याविदृतति- कारिणः 7--वृहृत्कथामंजरी, उपसंहारछोक ३७ । ४. “्रमद्धागवताचाय॑सोामपादान्जरेणुभिः ।--तत्रैव, शोक ३८ 1 ५, द्र्टव्य-ओौचित्यविचार चर्चा, दरावतारचरिति, रामायणमंजसी आदि यन्धा के मज्नलाचरण ।




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