अल्पता की समस्या | Alpata Ki Samasya
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
224
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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साथ दें या न दें, यह एक बात है; लेकिन इस हृद तक गिर जाना हमारे लिए
शर्म की बात होगी कि হা की हिन्दू या मुसलमान रियाया के साथ, चाहे जितना
अत्याचार क्यों न हो, किन्तु ब्रिटिश इंडिया के किसी हिन्दू या मुसलमान के
ज़वान खोलने का अधिकार नहीं है| मुस्लिम लीग का यह दावा कि हैदराबाद
की रियाया अगर आज़ादी की लड़ाई लड़े तो ब्रिटिश इंडिया के हिन्दू या
मुसलमान वहाँ की रियाया के साथ हमददी ज़ाहिर न करें, सरासर ग़लत है,
और यह इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि मुस्लिम लीग का दृष्टिकोण एक
साम्प्रदायिक दृष्टिकोण है | वह कोई आज़ादी की लड़ाई रूडनेवालों की जमात
नहीं | वह तो उन लोगों की जमात है, जो मज़हब के नाम पर विशेष अधिकार पाने
या जहाँ पर उनके वे अधिकार प्राप्त हैं, वहां उनकी रक्षा करने के लिए मर-मिटने
के तेयार हैं | मुसलमान सरमाएदारों ओर ठेकेदारों की तो बह आजकल पनाह बन
गई है | ग़रीजों का चाहे जितना शोपण हो, लेकिन अगर शोगण करनेवाले मुसल-
मान हैं तो उनकी तरफ़ किसी के डँगली उठाने की हिम्मत भी नहीं करनी
चाहिए | अगर काश केई भूल से ऐसी वेश्रदबी कर बैठे, तो मुस्लिम लीग उससे
खुद लड़ने के लिए तैयार ইা जायगी | लीग दावा करती है कि आज़ादी की लड़ाई
में फिलस्तीन के अ्रसत्रों से उसकी हमदर्दी है | फ़िलस्तीन के यहूदियों के विशेषा-
धिकार तो नदीं मिलना चाहिए; अधिकार मिलना तो दूर रहा, उन्हें वहाँ रहने
भी न देना चाहिए | वर्हा पर अ्क्सरियत ( 1७४७]०४४ए ) की ये लोग হাই
देते हैं, लेकिन हिन्दुस्तान में ये लोग अ्क्सरियत के भूल जाते हैं। यहाँ पर
अक्िलयत ( माईनारिटी ) का भंडा ऊँचा रखना चाहते हैं । हिन्दुस्तान के
बाहर मुस्लिम देशों में मुस्लिम लीगवाले अक्सरियत के हिमायती हैं, लेकिन
हिन्दुस्तान के श्रन्दर इनको निंगाह में अक्सरियत की केई बक़ृत नहीं | उन
सूत्रों में जहाँ मुसलमानी सम्प्रदायड्रालों की संख्या आबादी के लिहाज़ से ज़्यादा
ठे, लीग ब्रहते की समथकदहे। लेकिन जिन सू में मुसलमानों की संख्या
श्रावादी के लिदज़ से कम है, वहाँ ये लोग अक्सरियत की दद्दाई नहीं देते ।
बहाँ अक्सरियत का उसूल टुकराने के लिए तैयार हैं और अम्नलियत का मंडा
- ऊँचा करना चाहते हैं | क्या इनका यह दावा है कि ऐसे सूत्रों में अक्सरियत का
केई हक नहीं है, उसका केई अधिकार नहीं ? वहाँ यदि किसी का केई हक
स्वत्न और अधिकार है, तो क्या केवल अक्नलियत ही के वह ग्रात्त है ?
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