प्रेम सुधा [ भाग - 11 ] | Prem Sudha [Bhag - 11 ]

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Prem Sudha -11 by राजा राम एएड सज्ज - Raja Ram Eeda sjj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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লাম-লহিলা 'पूर्ण हो गया है? ऐसा कहा जा सकता दै । अरिहन्च भगवान्‌ ने कमे विनाश का कार्य आरमभ ही नहीं कर दिया है बक्ति उसकझ्रे प्रधान भाग को सम्पन्न भी कर लिया दे | ऐसी स्थिति में उन्हें भरिन्त कहने में कुछ भो अत्ोचित्य नहीं है । दूसरी बाद यह है. कि घातिकर्स द्वी वास्तव में आत्मां के शत्रु हैं| अवातिकर्म तो घातिकर्मों के पिछलग्गू हैं। वे घातिकर्मों के अभाव में आत्मा का कोई बिगाड़ नहीं कर सकते । जन्म-मरण के चक्र को चालू रखने का सामथ्य उनमें नदीं हे। अतएबव अधाति कर्मा कौ सत्ता, घातिकर्सोी का विनाश हुआ वहाँ अधघातिकर्मा का विनाध अवश्यंभावी है। इस दृष्टिकोण से सशरोर केवली को “अरिहन्त” कहना उचित ही है । “चलमाणे चलिए! इस सिद्धान्त को विस्तार से समझाने की आवश्यकता है । किन्तु विस्तार करने पर वह धथक्‌ द्वी विषय दो जाएगा और प्रकृत विषय अधूरा रह जाएगा। अतरब उसका संच्षेत्र में निर्देश सात्र कर दिया गया है ! यथार्थ नाम का एक उदाहरण 'जीब' है। जीव को प्राणी, सत्त्व, हंस, चेतन और भूत भी कहते हैं। यह सब्र साथंक नाम है। देव, मानव, नारक, एकेन्द्रिय, प्चेन्द्रिय आदि सर्व प्राणी 'जीव” कहलाते हैं। मगवदीसूत्र में प्रश्न रिया गया है कि आत्मा जीव क्यों कहलाता है? इस प्रश्न का उत्तर यह दिया गया दे कि जीवन घारण करने से अर्थात्‌ आत्ममाव से जीवित रहने के कारण जीव 'जोब' कहलाता है। आत्मा को प्राणी मी कहते हैं। जो प्राण घारण क़रता है। वह प्राणी कहलाता है । जैसे घन से घनवान्‌ और विद्या से विद्यावान्‌ शब्द वने हैं, बेसे दो प्राण से प्राणी शब्द निष्पन्न हुआ है यह भी गुणानुसार नाम दे।




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