भारत में आर्थिक नियोजन एवं प्रगति | Bharat Me Arthik Niyojan Evam Pragati
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
633
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)4 । भारत मे जाधिक नियोजन
का एकव्रीकरण अथवा विणेपाधिद्कत वर्गौ कौ सहायता प्रदान करना हो सकता है)”! वास्तव मे
बिसी देश की अर्थ॑-व्यवम्था का व्यवस्थित एवं विस्तृत प्रबन्ध जब इस प्रकार किया जाता है कि
आशिक प्रगति की दर मे पर्याप्त वृद्धि की जा सके तो इस प्रकार के प्रवन्ध को आधिक नियोजन
कहते है । आधिक नियोजन उस प्रकार आधिक प्रगति का एक प्रमावशाली तन्व होताहै । यह वृह<-
अर्थशास्त्र (१(8९70-०८०॥०॥॥८७) वा एक विकसित स्वरूप है जिसके ह्वारो सीमान्त अर्थशास्त्र को
चुनौती दी गयी है । आधिक नियोजन के अन्तर्गत देश के साधनों का प्रभावशाली एवं पूर्णषतम उप
योग इस प्रकार होता है कि प्रत्येक नागरिक को भौतिक, सामाजिक एवं नैतिक दृष्टिकोण से अच्छे
जीवन-स्तर का आश्वासन दिया जा सके और वह अपने श्रम का प्रतिफल पाने का अवसर प्राप्त
कर सके । आर्थिक नियोजन के अन्तगत देश की आथिक, सामाजिक एवं सास्क्ृतिक सरचनता मे
मूलभूत परिवतेन होते है । आधिक प्रवन्ध को वृहदु-अर्थशास्त्रीय स्वरूप द॑ने के लिए राज्य को
आशिक क्रियाओं का नियन्त्रण एवं निर्देशन करना होता है जिसके परिणामस्वरूप सत्ताओं का
क्रेन्द्रीक्श्ण राज्य के हाथो में हो जाता है। दूसरी ओर नियोजित _ विकास का लाभ समाज के
प्रत्येक सदस्य तक पहुंचाने के लिए राज्य द्वारा सत्ताओं का विकेन्द्रीकरण किया जाता है और ऐसी
पयय एवं स्थानीय समस्याओं की स्थापना की जाती है जो प्रत्येक्त नायरिक तक योजना के लाभ_
पहुँचा सके ।
नियोजन का प्रारम्भ
आधिव नियाजन के वर्तमान स्वरूप का विचार मावर्सवादी समाजवाद मे निहित था जीर
इस विचारधारा का व्यावहारिक उपयोग रूस में साम्यवादी शासन स्थापित होने के पश्चात् ही
किया गया। यूरोप के अर्थशास्तियों विचारको एवं लेखकों को 19वीं शताब्दी के अन्त में पूँजीवाद
बे दोपों का जब आभास होने लगा ता राजकीय हस्तक्षेप के द्वारा अर्थ-व्यवस्था का समायोजन करने
की विचारधारा उदय हुई। इसके अन्तर्गत सरकार को अर्थ-व्यवस्था मे समायोजन करन हेतु कार्य-
वाहियाँ तभी करनी थी जब अर्थ-व्यवस्था मे कठिन एवं हानिकारक परिस्थितियाँ उत्पन्न हो गयी
हो अथवा उनके उदय होने की सम्भावना हो गयी हो । इसके अतिरिक्त सरकारी हस्तक्षेप केवल
उन्दी केतो तक सोमित रवा जाना धा जिनमे कठिन परिस्थितियां उदय हो रही हा और भर्य-
व्यवस्था के सभी क्षेन मुक्त रूप से कार्य कर सकते थे । सरकारी हस्तक्षेप की प्रमुख कार्यवाहियाँ
भरक्षणात्मक शुत्क, विषणि-नियन्त्रण उत्पादन एव विद्रय कोटा निर्धारित करना, कारखाना अधि-
নি সু, ক আন উনি क्य-नियन्त्रण, कच्चे माल के वितरण पर नियन््तण आदि है।। इस प्रकार सरकारी हस्तक्षेप
द्वारा देश के के जीवन पर सचेत (००५९०४8) एवे समन्वित नियल्यण नही होता है जो
आाथिक नियोजन के प्रमुख अग होते है । आथिक नियोजन की विचारधारा को राजकीय हस्तक्षेप
की विचारधारा से नैतिक बल तो अवश्य प्राप्त हमा परन्तु राजकीय हस्तक्षेप अपने आप मे आधिक
नियोजन का स्वरूप नही समझा गया।
आधिक नियोजन की विचारधारा का प्ारम्म विकास एव विस्तार 20वी -शवाब्दी का ही
उपहार है। सन् 1910 मे नॉर्वे के अर्थशास्त्री प्रोफेसर क्रिस्टियन जोन्हेयडर [ढं780॥1 इलाएव-
05১৫০ 7) ने आधिक क्रियाओ का विश्लेषण करते समय आधिक नियोजन की एक महत्वपूर्ण व्यवस्था
+ रुप से स्थान दिया। यह केवल एक सैद्धान्तिक विश्नेषण था।
मु प्रथम महायुद्ध म जर्मनी ने सरकारी हस्तक्षेप को विस्तृत किया और युद्ध के प्रशासन के
कष नियोजन का उपयोग क्रिया गया । बूराप के अन्य राष्ट्रो ने भी आथिक नियोजन एवं सरकारी
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