समकालीन हिंदी उपन्यास | Somekalin Hindi Upnyase
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
201
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १७ )
में परम्परागत मुल्य बाधक दनकर उपस्थित होते हैं। समाज से भयप्रीत द्वोबर ही
रैखा गर्षपात कराती है। 'मेत्रा क्रांचःः की कमला विवाह के पूर्व ही मातृत्व
का बोझ ग्रहण वरलेती है। 'खागर लहरें और मनुष्यः की रत्वा अपने छाति की
परम्परागत मर्यादाओं का त्याग कर ठीन-घार पुरुषों के सम्पर्क में आकर संबंधों
की स्वष्डन्दता ढे भूत्य के प्रति आसधा व्यग्ठ करती है 1 ज्वाला मुखी की विजया
नारीकोवंघनका नडी मुक्तिका, कम्नोरी कानही शज्ित का प्रतीक मानकर
परम्परागत मूल्यों को चुनोती देती है । 'हायी के दांत” की रत्ना अन्याय के विद्द्ध
असीम शोर्य का परिचय देकर उत्स द्ोठो है। युवा मानस में कम्युनिस्ट विचार-
আহা का प्रवेश दो चुका था मोर यही क्रांतिकारी विचारों का बीज दै इससे नारी
वर्ग भी मछता नहीं रहा । (ईषान कौ कमला, खदा! की सुदा 'बूँद बोर समुद्र”
की बनफन्या, शभूदानी मोनिया' की खीठा तया सोनिया অপ নাব্য! कम्युनिस्ट
विधारों को व्यावष्टारिक रूप देने में सक्रिय हैं।
मध्यवर्गीय परिवार और अभिषणारय वष्ठी नारियों का विण करने वाते
उपन्यासकारों में भगवती प्रसाद वाजपेयी, उम्र, जैनेन्द्र कुमार, अज्ञेय, भगवतीचरण
वर्मा भर यशपाल प्रधृ ह 1 भगवठीप्रवाद वाजवेयो का 'पिपावा' उपन्पाष जैने
कुमार के 'कुनीता' से मिलता-जुलता है। कामरझुंठित शकुस्तला को सुनीता की ही
भाँति भारमविश्वाघ नहीं है इसलिए वह पत्ति को किसी भी समय नहीं छोड़ना
चाहती | उम्र का नारी दृष्टिकोग उनके प्रयतिवादी विचार के कारण हमें उचित
नहों लगता क्योंकि नारी की जो धबसे वड़ी विशेषता है उसे वे उसकी सबसे बड़ी
कमजोरी मानते हैं। उग्र जी की नारी शक्तिद्वीन है । उप्र थो का कहना है 'कुल
मिल्राकर मुझे मातुर पड़ा कि उत्तमठम वारी के लिए मानव समाज में व्यामिषारों
पुरष की अंक शायिनी बनने के सिवाय गति नहों” । जैनेतद्र कुमार का मारी संबंधी
दृष्टिकोण मनोविज्ञान, नैतिक विद्रोह दया सूद्म घरिव-चित्रण एवं फलात्मक सौष्ठव
के आवरण में অপিত্মধর ইসা है। 'परख” में बालविधवा कट्टों को बैधत्व प्रतिभा में
बाँध देता है जिसे वह दाध्यात्म विवाह की संज्ञा देता है। 'त्यागपत्र! में मृणाल
पति द्वारा ठुकराये जाते पर न समाज से विद्रोह करके न्याय मांग कतीह मौर
न ही स्वतंत्र दोकर पैरों पर खड़ी हो सकती है। इलाचद्र जोशी के उपम्यासों में
मूलतः दो प्रकार के नारी चरित्र बाते हैं, एक में कुछ ऐसे मारी चरित्र बाते हैं जो
पुरुष के अहम झुत्याचार ओर शोषण की वेदी पर रूमपित हो जाती है और दुसरे
वे नारी पात्र हैं जो अत्याचार व शोपण का विरोध करते ट} (जनीः उवन्यास
में नारी प्रगत्शील दिखाई देतो है । इलाचन्द्रजोशी के नारी पात्र प्रेमचंद की मारी
भावना का विकास करते हैं। 'शेखर एक जीवनी' में शशि लेख के नारी संबंधों
दृष्टिकोण की प्रधिमूति है । अज्ञेय का नारी दृष्टिकोण जैनेन्द्र की मारी भावना
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