किशनचन्द बेबस | Kishan Chand Bewas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रचनाएँ एवं रचना-विकास-क्रम
“देवस' सिन्धी साहित्य के प्रापुनिक काल के सर्योतमुसी प्रतिभा के प्रमर
कवि हैं, जिन्होंने पद्म भ्ौर गद्य दोनो विद्याप्रों पर समान रूप से प्रधिकार रखा ।
एक प्रध्यापक होने के नाते उन्होंने विद्याधियों के लिये सामूहिक्र गीतो, प्रभात फेरी
के प्रचार गीतो की सृध्टि की तथा पाठ्शालाग्रों के उत्सवों के लिए मचनोय
नाटकों को रचना की । उनके गद्य में गतिशीलता, मर्यादा तथा उपदेशात्मकता
प्रत्यक्ष परिलक्षित है। ऐसा प्रतीत होता है कि सादा गद्य विद्याधियों के लिये ही लिखा
गया हो | लेखो में गद्यकाल की सूक्ष्मदशिता भाव-प्रवणता तथा प्रध्यापन को शैली
का स्पष्द दिग्द्शन होता है। उनके गद्य से ही वाकयों का पद्मयमय प्रवाह, तुकान्तता
तथा कोमल तार-गुम्फन उनमे भावी कवि के उदय को झोर इंगित करता है ।
उनको प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं कवि इसलाकी वर्क, प्रक्लाद भक्त, मूरदास, प्रित पुजारिश
(प्रीत्ति-पुजारिन), मनोहर नागिन (पवित्र प्रेम), तृप्णा-चाकर, इण्डलठ (इन्द्र घतुष),
भागिया स्कीम (समृद्धि-योजना), जिगरो कुर्बानी भ्रादि ।
जुलाई 1933 में 'इखुलाकी बर्क! नामक उनका निबन्ध-संकलन
प्रकाशित हुप्ता जिसमे नाटकों के भ्रलावा सोलह निबन्ध भीर! ये निबन्ध
सच्चरित्रता, झाम्तरिक प्रातन््द, ज्ञान-अज्ञान, परिश्रम का आनन्द, हृदय भौर
मस्तिष्के, बालक, संसार वया है ?, फूल, नष्ट करने की भपेक्षा निर्माण, जीवन का
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