नागानन्दम | Naganandam

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Naganandam by हरिवश लाल लूथड़ा - Harivash Lal Loothada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिद १५ देते समय उसने कालिदास से भाव प्रेरणा भी ली टै) गौरो मन्दिर मे नायक और नायिका का प्रथम मिलन रूढियत है तथा दूसरे ग्र क में उनक विरह वर्णन में मौलिकता का प्राय अभाव है। किन्तु यह सब कुछ होते हुए भी, नाटक में क्तिने ही ऐस स्थल हैं जो लेखक की कल्पना शक्ति एवं प्रतिभा का प्रर्याप्त परिचय प्रस्तुत करते हैं । नायक तथा नायिका के एक दूमर के प्रम व मम्बध में भ्रान्ति में पडना तथा अन्तिम भ्रक में त्याग की भावना का उच्चतम शिखर पर पहुँचाना, लेखक की प्रौढ प्रतिभा के द्योतक हैं । हास्य विनोद से परिपूर्ण तूतीम झक भी हप की वल्पना का परिणाम है 1 सागानन्दम्‌ एक्रोचर नाटक है 1 इसे पढ़ते अथवा देखते समय हमारी रुचि ग्रन्तिम हृश्य तक बनी रहती है। घरनापो की विचियता एवं विविधता तथा उनका परस्पर घात प्रतिघात हमे अपनी ग्रोर निरन्तर भ्राइ्ट किए रहता है | यह नाटक की महत्तपूर्णा दया प्रशयनीय व्रिशपता है) भापा तथा भावो की सरलता तथा क्यावक की द्वुत प्रगति ने इस उत्कण्ठा को बनाए रखने में बिद्यप योग दिया है । नाटक कै कथानके वे निर्माण मे एक गम्भीर टि है जिसकी सहन ही उषेश्षाको नही जा सकती । नागानद मे क्यं व्यापार शौ एकता (0100 ० ^ लाला) का अभाव है । पहलतीनम्रको तथा তিন হা अरकों की घटनाओ्रो में प्रत्यक्ष रूप से काई भी सम्बध दीख नहीं पडता । पहल तीन अको म नायक तया नाथिका के परस्पर प्रेम तथा विवाह को» कथा का वर्णन है और चोथे तथा प्राचवें अक में मायक़ के आप्मोत्सग की कहादी है। क्थानक के पहल भाग से दूर भाग का विकास स्वाभाविक प्रतीत नही होता । यदि रचना तीसर प्र क एर ही समाप्त हो जाती ता यह छाटा सा মুলান नाटक बन जाता । इसक ग्रतिरिक्‍त दुसर भाग मे हमे नायक के जिस भ्रपरिमित परोपकार भावना तथा श्रा म बलिदान क लिए ६ निश्चय के दर्शन हाते है व पहले भाग में उसकी काम लोलुपता तथा विरहजनित ग्धीर मे मेल




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