महाराजा सूरजमल जाट | Maharaja Surajmal Jaat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : महाराजा सूरजमल जाट  - Maharaja Surajmal Jaat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about उपेन्द्रनाथ शर्मा - Upendranath Sharma

Add Infomation AboutUpendranath Sharma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दफ्तरों को लुटा गया । सम्भव प्रबन्ध की दृष्टि है मिर्दा नजफ खाँ दफ्तरों के शेप कागजातों को झपने साथ ले गया 7 भस्तु लेखक को दोहरी भभिलेखो पर निभर रहना पडा है। ही के कवियर सूदन मापुर चलु्देदी ने विश्वसनीय ठथ्यपरक थी उपयोगी काव्य ग्रम्थ सुजान चरित लिखा परन्तु यह डर १७३ ई० के झा अ्नायास ही झघूरा रह जाता है। इस ग्रन्थ से सिनसिनवार वश की परम्पण समकालिक समाज व्यवस्या झाधिक सम्पन्नहा सैन्य विज्ञान तकनिकी का जान | होता है । फादर फ्राकोज वेष्डल ने १७६८ ई० तक का विवरण लिखा है। परन्तु लोक चर्चा के भाघार पर भ्नेको सारह्ीन कल्पित व भ्रमात्मक विवरण स्देह के प्रतीक हैं। झत इसक भघ्ययन में सावधानी की झावर्यकठा है। इसी क्र में गोट- लिइद कोहम की पुस्तक मरतपुर राजवश की तवारीख एकाकी है भोर काल के लिए प्रधिक उपयोगी नहीं है । फैप्तान रॉवटे मारीसन के भाग्रह पर प० बलदेव छिंह सुर्पंद्धिज ने ददारीख नस्तपुर नामक गम्थ लिखा था परन्तु भालोन्च काल के लिए लेखक ने सूदन का घपयोग किया है । ज्वाला सहाय मु सिफ ने दाजपूताना ठथा िस्ट्री मॉफ मर्तपुर में प० बलदेव सिंद का शाब्दिक उपयोग किया है ॥ प्रिटिश शासन काल में प्रथम बार फर्नल जेम्स टॉड ने राजपुतों का ग्रांट ढफ ने मराठी दा भौर करिग्यम ने सिखीं का इतिहास लिखकर इन राजनैतिक शक्तियों को भारतीय इतिहास में उभारा । परन्तु दिल्‍ली के पड़ौसी जाटों पर किसी ने भी हप्टि नहीं डाली । १६२४ ई० में स्व० डॉ० कालिका रंजन कान्नगो ने हिस्ट्री जाद्स लिख कर जाट जन सत्ता थी ्रभावशालों भूमिका को किया । जिसके खिए दा० का भारतवर्पीय जाट दाजिय महासभा ने पुष्कर सम्मेलन में सम्मान किया था 1 किन्तु फिर भागे प्रगति नहीं हो सकी । इसमें रीति-परम्पराधो की उपेक्षा धवश्य खतती है । डॉ० यदुनाथ सरकार ने मुगल का पतन में संकेतात्मक ध्वनि में सूरज मल के महान व्यक्तित्व को किया है । भ इयर देगी रजवाडी के एकीकरण मे बाद रजस्थान के मिस मिसते रणवादों से दिवानिदारों थे घिलेस भष्दार मैं झाये हैं इस व प्रचुर सामग्री धंप्ययन थी सहज सुगमता के परिणामत सामन्ती सकोणुंता पूर्वाग्रहों से विमुक्त प्रतुमूनियां नवीन चिन्तन व विकसित जनदादी विदारधारामों के साथ शोप शायों में धड़नों रधि ने बाफो प्रगति की है 1 राजस्वानी व मराठी सभिनेसों सपपुर व रेरॉई ने नवीन सब्यों दे घटनाएं शो उजागर किया है । इस




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now