अध्यात्म की आधारशिलाएं | Adhyatm Ki Adharshilayein

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Adhyatm Ki Adharshilayein by स्वामी कृष्णानन्द - Swami Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० अध्यात्म की आधारणशिलाएँ कौन-से सम्भाव्य प्रलोभन हैं जिनके प्रति साधक को जा रहना है ? सर्वोपरि, साधना का चरम लक्ष्य क्या ই? इसके अतिरिक्त साधक के मन पर कल्पता का यह सूए सवार हो कर क्लेशित कर सकता है कि उसने ठेस परि प्राप्त कर लिया है जबकि उप्तके आध्यात्मिक लाभ को उपल वस्तुतः नकारात्मक है। आध्यात्मिक जिन्नासुओं को उपयुक्त सहज ही नहीं प्राप्त हो जाता है। उनके अयुकत पथ पर $ काये जाने तथा अवाड्छित सण्डलियों मे फंसने की सस्भाक रहती है। चूँकि महापुरुष सामान्य जनता में अपनी घोष नहीं करते; अतः उतकी पहचान करना अथवा उनकी विः मानता की जानकारी प्राप्त करता भी कठिन होता है। यंदि ऐर मान लें कि व्यक्ति की किसी महान्‌ सतत पुरुष से भेट हो ग्य तब भी उससे लाभ उठाना कोई सरल कार्य नहीं है; वर्यो* यद्यपि सन्त करुणा होते हैं; पर उनसे संव्यवहार करता कठि होता है । व्यक्ति के महीनों अथवा वर्षो परथन्त उन साथै निरन्तर रहने पर भी प्रत्यक्ष स्प में उसे कुछ उपलब्धि नहीं होती है। इसमे साधक में उनके प्रति अरुचि हो जाती ष क्योंकि उसमें इतना धैर्य नहीं होता कि वह समय के परिपक्व ओर प्ररि स्थितियों के अनुकूल होने तक प्रतीक्षा कर सके । आध्यात्मिक लक्ष्य की पूर्ति में कुछ बाधाएँ एवंविध हैं : अधीरता व्यक्ति को देर तक प्रतीक्षा करने से का अहङ्कार यह्‌ चाव ওত करता है कि शायद त টা রা ज्ञान नहीं है, कामोदे ग आध्यात्मिक पय উনি রঃ इन्द्रिय-तुष्टि की दिशा से प्रवृत कर्त ह, अदन्ता ५ 1 मान्यता की ओर घसीटती है, लोग सम्पत्ति, पद भी




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