श्री जैन धर्म बीजी चोपड़ी | Shri Jain Dharam Biji Chopadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ॐ यहान ग्रंथों रच्या छे, पनी पफ तो आ पुस्तकों लेश माद्रः पण नथी, तोपण ते महात्माभानां वचनोनेन अब्रवं चाल जपानाने अनुकुछ थाय, एवां पुस्तकोनी अग्रोए रचना करी छ, अने आ पुस्तक वाची श्रावक वग येनो बोध मेछबवा श्रक्तिसान थै, अने प्राचीन अया यांचा तेमनी अभिर्ची वधे, तो अपे अपारो গন सफर थयो गणीभु, अमने कहेवाने हपे थाय छ के, आ बांचनमाछानां प्रसिद्ध थणएलां पुस्तकों जन शाठाओमां घणे ठेकाणे च- ल्ाव्रयां श्रं धयां छे, अने विद्यार्थीओने ते द्वारा धामिक बोध सृगपताथी थइ श्र: छे, एचू अनुभदर्मा आनेले छे आ प्रमाणे पणे स्थछे হালাজীনাঁ आ पुस्तकों उपयोगी यद्‌ पटदायी तेपांनां केटटांक पुम्तकोनी पुनः आदहइत्ति झादवानी जरुर पढ़ी छू. আ অনাথ या बांचनपागा आपणी श्वासय उपनी यायी अमनि ते प्रसिद्ध फरादवा संदंधी उत्साह वध्यो छे, अने অনা আহা राखोए ভীত फे, जा दांचनमाछानां बाकीनां पृस्तका पण जेप बने तेम जलदी नयार करी, सदगुणी श्रावक्रों पासे अमे रजु पारीश, सी जन आगगना टग्यानुशंग, घरण फरणानयाग, गे, জন गशिदाजुवाग, ए भार गोग्े मर मे ^ क ४ तु ; दिधायाशान संगम पढ़, उने र




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