समकित रत्न सार संग्रह | Samkit Ratn Saar Sangrah

Samkit Ratn Saar Sangrah by रत्नलाल महता - Ratnlal Mahata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নি | ৩% | |} बन्दे वीरम्‌ ॥ मंगलं भगवान वीरो मंगल गौतम प्रभु । मंगलं स्थूल भद्राय जैन धमंस्तु संगलं ॥ (= _ ৬১ ७ _ (=. पचा कह क अयः सहत সান पहले घोले गति चार--नरक, तिथच, সন্ত 'और देव गति | विशेषाथ--जीव की पयोय विशेष को হালি कहते हें। (१ ) नरक में रहने वाले जीवों की नरक गति है । (२) गाथ, मेंस, कुत्ता, ओदि जीवों की तिथच गति है। स्त्री, बालक, मलुष्थ सकी मनुष्य गति है। देवताओं की देवगति है । ' प्रश्न | गति कितनी हैं ? नरक व देवगति छा कथा अथ है। मनुष्य, और पशु कौन गति का जीव हे ९ गतियो के नाप कहो ? 8




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