बाँधो न नाव इस ठाँव भाग - 1 | Bandho Na Nav Is Thanv Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ [] उपेन्द्रनाथ ग्रश्क की सचाई को समभने का अवसर मिला । मुझे अपनी माँ के इस उपदेश की माहीयत पहली बार समझ में आयी कि--पेट तो कुत्ते और गधे भी भरते है और धन-वैभव वेश्याओओ के पास भी होता है ।--याने जिन्दर्गी का तमाम संघर्ष श्रगर खाने-पीन और सुख-सुविधा से रहने के लिए ही ह ( और उसके साथ कोई महत ग्रादशं या मन्य नही जुड़ता ) तो वह महज पण श्रथवा वेश्या का मघं हँ । यही वजह हैं कि तमामतर सफलता के बावजूद, मै बडी-से-बडी नौकरिया पलक भपकते छोड म्राया मरौर मौत के सन्दर्भ मे जिन्दगी की घोर व्यथंता जान कर, मैने उसके बावजूद जीने का जो उदेश्य बनाया उसमे तमाम बाधाओं के चलते, में रच-मात्र नहीं भटका । जिन अनुभवों के बल पर मै बडे-से-बडा प्रलोभतत छोड कर, अपनी तरह से ( भले ही सचण्-भरी श्रौर कठिन ) जिन्दगी जी सका, उन्हे १लग की नोक पर न रखना, न केवल कायरता, वरन बददयानती भी होती । यही कारण हं कि जब-जब मेने कोई दूसरा उपन्यास लिराने की सोची, वे अनुभव मेरे रास्ते की दीवार बन गये और बिना उन्हें पुरो तरह अभभिव्यवत किये, मेरे लिए झ्ागे बढ़ना कठिन हो गया और म॑ वार-वार दूसरी विधाओं में भटक कर, फिर उन्हीं अनुभवों और उन्हें व्यक्त करने वानी सद्यम विधा--3पन्यास--पर वापस श्रा गया । विदेश में रह कर शोध करने वाले एक विद्रान ने मुझे पिछले নদ, इस उपन्यास-माला को ले कर लगभग सो प्रश्न भजे । मै प्रस्तुत उपन्यास लिखने में व्यस्त था, इसलिए उत्तर देन से घवराता था, नैकिन प्रश्न इतन सूक-बूक-भरे, वनिषादी ओर गहरे थे कि मैं धीर-भोरे उनके उत्तर दने लगा; उस उपन्यास-माला वे सम्बन्ध में शायद ही बोरई ऐसी बात हो 1 मैने उन प्रश्नों के उत्तर मे न कही हो । वह सब म॑ यहा नहीं दोह- ওলা । লিঞ্চ यही कहंगा कि में गिरती दीवारे के मवमभ्मम पाच ्रण्डो मे उन बुनियादी जज्बों को, उनवी तमाम पेचीदगियो ग्रौर ग्रन्थियों के साथ, उकेरना चाहता हूँ, जो आदमी के काय-व्यापार के पीछ प्रचालन- शक्तियो का काम करते है--अर्थ, काम और अह , मौत और नियर्ति, जिन्दगी कै सघर्पो कौ घोर व्यर्थता श्रौर उसके बावजद प्रादपी की प्रवल जिजीविषा; जिन्दगी की व्यावहारिकता के लिए दिये गये सूत्र और उनका




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