विचार धारा | Vichar Dhara
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
191
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ध ` विचोर-धारां
उद्धत कर दिये हैं$* । कुछु ने उनका सारांश दे दिया है। एक प्रकार से
मध्यदेश के विकास की अंतिम अवस्था बोद्ध कराल मे बीत चुकी थी श्रौ
अब उसके संकुचित होने के दिंन आ रहे थे | देशों के पुराने नाम अब
भ्ुलाए, जा रहे थे और उनका स्थान धीरे-घीरे नये नाम ले रहे थे | पूर्व से
हट कर अरब राजनीतिक शक्ति का केंद्र पश्चिम की ओर आ रहा था।
पाटलिपुत्र का स्थान कन्नौज ने लें लिया था* | मध्यदेश की सीमा का पूर्व
में कम हो जाने का एक यह भी कारण हो सकता दै | माकरडेय पुराणः
में विदेह व मगध को मध्यदेश में नहीं गिना है । इसके अनुसार कोशल और
काशी के लोगों तक ही मध्यदेश माना गया है| यह घटने की पहली सीटी
है | बृहत्संहिता में काशी और कोशल को भी मध्यदेश के बाहर कर
दिया है।
वराहमिहिर की बृहत्संहिता5 ( संवत् ६४४ ) का वर्णन अधिक प्रसिद्ध
ओर पूर्ण है | ज्योतिष के संबंध में देशों पर ग्रहों के प्रभाव का वन
करने के लिये भारत के देशों का विस्तृत बृत्तांत बृहत्संहिता के चौदहवे
अध्याय में दिया है। इसके अनुसार भारतवर्ष के देश (शआर्यावत्त में नहीं )
भध्य, प्राक् इत्यादि भागों में विभक्त हैं। मध्यदेश की सूची में ये नाम
प्रसिद्ध हैं-- कुक, पंचाल, मत्स्य, 'शूर्सेन और वत्स | कुछ और नाम भी
दिए हैं किंठु वे स्पष्ट नहीं हैं | वत्स देश की राजधानी प्रसिद्ध नगरी कोशाम्बी
थी जो प्रयाग से ३० मील पश्चिम में बसी थी। अतः बृहत्संहिता के मध्यदेश
की सीमा पूव में मनुस्मृति के समान लगभग प्रयाग तक ही पहुँचती है
यद्यपि बृहत्संहिता में साकेत नगरी को मध्यदेश में गिना है. किंतु काशी और
कोशल के लोगों की गणना स्पष्ट रूप से पूरब के लोगों म॑ की है | संस्कृत के
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लेका, बर्मा, स्याम, कबोल, चंपा, जावा व अन्य टापू , मध्य एशिया, चौन, कोरिया, अनाम, লিঘল
छर् जापान ।
(१) त्रिकांड शेष, २, १५८६ |
्रभिधान चितामरि, ९५१ वाँ श्लोक ।
अमरकीश, २, १, ७।
(२) राजशेखर का वणन, देखो पत्रिका भाग « पृष्ठ १०-११ ।
, (३) माकंणडय पुराण, ५७, ६६ ।
(४) बृहत्संहिता में आए भूगोलसंबंधी शब्दों को सूची के लिये देखिए, इं० ०, १८५३
पृष्ठ १६५ ।
॥
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