जल की खोज अमृत की प्राप्ति | Jal Ki Khoj Amrit Ki Prapti

Jal Ki Khoj Amrit Ki Prapti by मिश्रीलाल जैन - Mishrilal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 9 ) हृदय परिवर्तेत का संकेत नहीं है । मेरे रूप, मेरे सौन्दयं का प्रदुष्य प्रभाव झापके हृदय, आपके मस्तिष्क में समाहित हो गया है। जिस दिन रूप पुण्य की पंखूरियाँ सूखने लगेंगी पराग के शरते ही प्रापका स्नेह स्वयं ही बिलोन हो जायेगा । >< >< >€ बर्ष बीत गये, सरस्वती ने मत्य के लिए अनेक प्रयत्न किये, पर झसफल रही । भ्रौर एक दिन ऐसा आया कि मरने की कामना को भी मारना पडा । मातत्व ने उसके हदय में वात्पल्य को जन्म दिया, मृष्पु की कामना करने वाला हृदय भी प्रनजाने में मीठी लोरियाँ गनगुताने लगा। अंग-प्रंग में विचित्र सी धनमति मर आई | उसके हाथ थपकियाँ देने भ्रोर अधर लोरियाँ गाने बरथस व्याकुल हो उठे । यह मातृत्व की माँग थी झोर नारी की प्रममर्थता ! मातृत्व एक दिन सफल हुप्रा | सरस्वती ने एक स्वस्थ और सुन्दर बालक को जन्म दिया | सरस्वती कमी मत्य की कामना करती भौर कभी जीने की | वह एक उलझ्ननमरी जिन्दगी जी रही थी । सरस्वती वी विशिष्ट प्रतिमा श्रौर संकल्प के घनी जनाना कालकाचार्य मौन नहीं बेठे, जकपति की सहायता से उन्होने भ्रवन्ती पर आक्रमण किया। विलासिता की क्रोड़ में क्रोडा करने वाले गर्दमिल्‍ल ने मी यद्धस्थल में क्षत्रि- योचित पराक्रम का प्रदर्शन किया, किन्तु प्रन्त में उसके हाथों से लड॒ग छिटक कर टूर जा गिरा | वह बन्दी बना लिया गया ! कालकाचार्य ने एक दुर्माग्य को दूर करने के लिए दूसरे दुर्भाग्य को झामन्त्रित किया | पहले बलात्कार, अनीति, पभ्रत्याचार की घटनाएँ यदा-कदा होती थी, भब वे शकों के जीवन का अंग बन गहं! शको केसब ही उज्जपिनी राज्य पर दुर्माग्य ने क्‍ग्राधिपत्य कर लिया | कालकाचाये पीड़ा से कराह उठे, सरस्वती भ्राँसुओं में डब गई । एक दिन कालका चाय॑ से सरस्वती ने कहा-- “एक सतीत्व के प्रतिशोध की प्रग्नि में प्रतिदिन झनेकों सतीत्व जल रहे है । भारतीय संस्कृति में अनेकों संस्कृतियाँ समाहित है। जिस देश की माटी की सोंर्घई गन्ध, उवंरापन, संस्कृति की गरिमा विश्व को ज्ञान-दान देती रही है, उस देश के हृदय मध्य-उज्जयिनी पर बिदेशी शासनं ? कालान्तर में विदेशी कुसंस्कार हमारी संस्कृति को डस लेंगे, तीथंकरों के जयधोष, राम- सीता को पुनीत गाथाएं, वेदों के मन्त्र, भरहूंत शरण पथ्वज्जामि जैसे पावन




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