ज्ञानामृत | Gyanamrit

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Gyanamrit  by विभिन्न लेखक - Various Authors

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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সা >> नव परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ रचना है। कहा जाता है कि परमात्मा ने मनुष्य को अपने जैसा बनाया ((0५ (124€ शाक्षा। 88 मा 118 0/1 17186) । सृष्टि के आदिकाल मेँ मनुष्य देवता था, दैवी गुण ओर दिव्य शक्तियों से भरपूर था। इसलिए वहाँ प्रजोत्पत्ति के लिए योगबल का प्रयोग होता था। वहाँ एक या दो बच्चे ही होते थे जिससे सारे सन्तुलन बने रहते थे। समय प्रमाण हर चीज में परिवर्तन आता है और परिवर्तन हमेशा घटते क्रम की ओर होता है। इस घटते क्रम ने मानव को भी पावन से पतित और असाधारण से साधारण बना दिया। संस्कृति का भी नाश साथ में होता गया। इसे ही आध्यात्मिक भाषा में संसार में रावण की प्रवेशता, विकारों की शुरूआत या पतन की शुरूआत कहा जाता है। देवी-देवताओं की महिमा के साथ हम कहना नहीं भूलते “सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी ........ ” | उनमें काम विकार आधारित संबंध नहीं थे। कई लोग बिना सोचे-समझे कह देते हैं विकार - प्रकृति या विकृति १ - अणुमाला “काम तो परम्परा से चला आ रहा है, सृष्टि के आरम्भ से चला जा रहा है” । ऐसा कह कर वे निर्विकारी करे जाने वाले देवी-देवताओं पर भी दोष लगाते हैं। परम्परा की दुहाई देने वालों ने देवताओं की अन्य परम्पराओं को क्यों नहीं निभाया यह भी तो बहुत सटीक प्रशन है। आज बच्चे काम विकार से होते है, आसक्ति से होते हैं, अनेक होते है इसलिए विकृति ओर असन्तुलन का चारों ओर बोलबाला है। प्राचीन पुस्तकों में जन्म की कई प्रकार की विधियाँ वर्णित हैं जैसे कि मंत्रोच्चार द्वारा, दृष्टि द्वारा, वस्तु या फल आदि द्वारा। आधुनिक विज्ञान के पास भी ऐसे बहुत से तरीके हैं जिममें प्रजोत्पत्ति के लिए काम विकार की जरूरत नहीं है, जेसेकि टेस्ट- ट्यूब बेबी, क्लोनिंग आदि । सुन कर हैरान होने की जरूरत नहीं है। अब तो कहा जाने लगा है कि बच्चे पैदा करने के लिए पुरुष की भी जरूरत नहीं है। हाल ही में चूहों पर एक सफल परीक्षण किया गया है, नवजात चह का पिता नहीं है। पवित्रता का प्रतीक माना जाने वाला राष्ट्रीय पक्षी मोर भी काम विकार के बिना वंश चलाता है। अनेक लोग सलाखों को मोड़ना, चलती घड़ी की सुइयों को रोकना आदि कार्य योगबल से करके दिखाते हैं तो ऐसे चमत्कारी योगबल से सन्तान पैदा होना असम्भव दै क्‍या ? वर्तमान समय, लोग काम विकार के व्यसनी हो गए है, उसमे बुरी तरह से फंस गए हैं। জন্দী-জন্দী से इस संस्कार को भोगते-भोगते जैसे कि इसे प्राकृतिक मान लिया गया है। इतना प्राकृतिक लगता है यह जैसे कि तम्बाकू, सिगरेट पीने वालों को तम्बाकू और सिगरेट लगती है। आज के साधारण मनुष्य में योगबल की वह शक्ति नहीं है जिसका वर्णन हमने ऊपर किया है। इसलिए सन्तानोत्त्पत्ति के लिए इस पतित विधि को अपनाया गया है। परन्तु यही एक तरीका है, यह कहना सरासर गलत दै । उध्वरिता जिन्हे कहा जाता है, वे तो योगबल से ही अति तेजस्वी प्रजोत्पत्ति करते है। काम विकार का उदेश्य सन्तानोत्पत्ति हो तो भी एक हद्‌ तक ठीक है पर सभी अपने विवेक को 14 वर्षं 40 अंक 04 / अक्टूबर 2004




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