अमेरिका में प्रजातंत्र | Democracy In America
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
56 MB
कुल पष्ठ :
414
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about अलेक्सिस डि टोकवील - Alexis De Tocqueville
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१६ अमेरिकां मं प्रजातंत्र
लिखा कि अमरीकी अपनी अत्यधिक महत्वाकांक्षा और छमंकारी प्रद्ृत्तियों
के प्रति प्रायः अपनी एकमात्र आस्था के कारण ही उद्योग में प्रगति करते हैं |
इसके अछावा अभी तो विशाख समृद्धि बाकी है । योकवील ने दरंस ओच्रो-
गिक कुछीनतंत्र अथीत्, १९वीं शताब्दि के उत्तरार्धं म ‹ राबर बेरन्स ? के
उदय का अनुमान कर खया था। फिर भी, यहाँ टोकबीख ने अमरीकी
आर्थिक जीवन की मूलभूत असंगतियों का पता पा लिया था, जिनको बाद के
मार्स्सवादी आलोचक कभी वस्तुतः ग्रहण नहीं कर सके थे - वह यह कि “ उत्पादक
वग की कुलीनता, जो हमारी आँखों के सामने वृद्धि कर रही है, इतनी कठोर
है कि एसी विश्व में अब तक स्थापित नहीं हुई है-साथ-ही-साथ वह
अत्यन्त परिसीमित और कम-से-कम खतरनाक है।” इसका कारण यह
था कि उसकी सम्पत्ति पर एकाधिपत्य नहीं था और उसकी सफलता के साथ
नतो व्यापक दरिद्रता की उग्रता, ओर न समाज का, केवट बहुत अमीर
और बहुत गरीब, इन दोनों वर्गों में छुवीकरण हुआ था |
टोकबील ने एक असाधारण विचारपूर्ण परिच्छेद “महान क्रान्तियाँ क्यों
अधिक दुलरूम हो जायेंगी ” में यह लिखा है कि क्रान्तियाँ प्राकृतिक असमानताओं
को नष्ट करने के लिए, होती हैं और यह स्वीकार किया है कि प्रजातांत्रिक
अमरीका में व्यवसाय और सम्पत्ति का प्रेम कुछ दी बडे अमीरों को जन्म देगा,
परन्तु ऐसे छोगों की भी संख्या कम होगी, जो अत्यन्त गरीब होंगे और
ऐसे लोगों का, जो न अधिक अमीर और न अधिक गरीब होंगे, विशाल
बहुमत हमेशा उनके बीच संतुलन रखेगा |
अमरीका में अमीर छोग एक स्थान पर केन्द्रित न होकर चारों ओर फैले
हुए हैं और अमरीकी वर्ग प्रणाली की विशेषता - जिसे मार्क्सवादी कभी देख
अथवा स्वीकार नदीं कर सकते - स्तरीकरण नहीं, अस्थिरता है । एसे वय मँ
<न तो वस्तुतः अमीर ही होते हैं और न गरीब, ” इसलिए अधिकांश पुरुषों
के पास “ जीवनयापन की इच्छापूर्ति के लिए, पर्योप्त सम्पत्ति है, परन्तु वह
ईर्ष्या उभाड़ने के लिए पर्योप्त नहीं है| इस प्रकार के मनुष्य हिंसक आन्दो-
लनों के स्वाभाविक शत्रु होते हैं, उनकी शान्ति उनके नीचे और ऊपर की सब
बस्तुओं को प्रशांत रखती है और समाज के स्वरूप का सन्तुलन बनाये रखती
है।” ऐसे देश में तब कल्याण से पोषित रूढिवाद मे वस्तुतः क्रान्ति की
सम्भावना नदीं रहेगी |
न ९ गै ५.
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