आधुनिक हिंदी साहित्य | Adhunik Hindi Sahitya
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी साहित्य को 'प्रसाद' का प्रदेय १६
प्रसाद के नाटक :--काव्य के बाद प्रसाद जी की साहित्यिक प्रवृत्ति
उनके नाठक हैं । ये हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ नाटककार कहे जाते हैं। सज्जन,
कल्याणी परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, विशाख, अ्जातशत्र, जनमेजय का
नागयज्ञ , कामना, स्कन्दगुप्त, एक घूट, चन्द्रगुप्त, भ्र् वस्वामिनी प्रसाद की
सुप्रसिद्ध नाट्य कृतियां हैं। प्रसाद जी के इन नाटकों का मूल आधार देशप्रेम
प्रौर भारतीय संस्कृति है जो सांस्कृतिक पुनरुत्थान और राष्ट्र के नवनिर्माण
की दिव्य भावनाओ्रों से संजोए हुए हैं। इतिहास के तथ्यों का श्रकनं
करने मे प्रसाद जी की कल्पना चक्ति उर्वरा है। कथानक संगठन,
मनोवेज्ञानिक भ्रौर सूक्ष्म चरित्र चित्रण, रमणीय कल्पना प्रधान शली तथा
गंभीर जीवन संदेश के कारण ये नाट्य कृतियाँ प्रसाद जी की श्रक्षय कीर्ति
का आधार वन गई हैं। अधिकाँश नाटक ऐतिहासिक कथानक लेकर ही चले
हैं जिनमें प्रसाद का गम्भीर इतिहास-प्रेम, भारत के वास्तविकं गौरव का
ज्ञान, मानव चरित्र का अ्रध्ययन तथा नाट्यरचना का सूक्ष्म कौशल निहित है।
नाटकों में युग विशेष के चित्रणों के साथ-साथ वर्तमान जीवन की समस्याश्रों
को भी ऐतिहासिक वातावरण में उपस्थित किया गया है। इन नाठकों
में पूर्व भर पश्चिम की नाट्य शैलियों एवं तत्वों के मिश्रण के कारण
इतिहास भौर कल्पना का मधुर सामंजस्य दिखाई देता है। राज्यश्री, स्कन्दगुप्त,
चन्द्रगुप्त और ध्र् वस्वामिनी आदि नाट्य कृतियाँ रंगमंच की दृष्टि से अत्यन
प्रभावशाली बन पड़ी हैं। घ्र्वस्वामिनी, देवसेना, मालविका, कल्याणी,
चन्द्रगुप्त, चाणक्य, स्कन्दगुप्त आदि पात्र प्रसाद की उच्चकोटि की सृष्टियाँ
हैं। काव्य में जहां वे अत्यधिक वेयक्तिक और रोमांटिक हैं वहां नाटकों को
सांस्कृतिक पुनरुत्थात और राष्ट्र के नवनिर्माण की दिव्य-भावनाओ्रों से पुरित
किए हुए हैं। विशाख की भूमिका में प्रसाद जी ने स्वीकार भी किया है कि
“मेरी इच्छा भारतीय इतिहास के शअ्रप्रकाशित श्रद में से उन प्रकाण्ड घटनाश्रों
का दिग्दर्शन कराने की है जिन्हें कि हमारी वर्तमान स्थिति बनाने का बहुत कुछ
সম ই |” बौद्धकाल, गुप्तकाल और मौर्यकाल ही हमारे श्रतीत के स्वर्णाकाल'
माने जाते हैं। प्रसाद के सभी कथानक इन्हीं कालों से सम्बन्धित हैं ।
चन्द्रगुप्त और स्कन्दगुप्त नाटकों मे राष्ट्रीयवा और देशप्रेम का भव्य आदर्श
प्रस्तुत किया गया है। राष्ट्रीयता की गुज लिए चाणक्य के दछाब्दों में आज
की प्रान्तीयता और साम्प्रदायिकता पर व्यंग किए गए है--“-मानव और
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