हिन्दी नाटक में नायक का स्वरूप | Hindi Natak Men Nayak Ka Swaroop

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रयम्‌ अध्याय्‌ नाटक का महत्व साहित्य मानव समाज के सांस्कृतिक जीवन की अभिव्यंजना ही नहीं उसकी श्रमूल्य निधिमीहै। संस्कृति का सम्बन्ध समाज के प्रतीत, वतमान प्रौर उसके भावी जीवन से है और साहित्य प्रतीत तथा वतंमान के सम्बन्धो को जोड़ने की एक उत्तम कड़ी है और भविष्य की संभावताओों को साकार करने का अनुपम साधन । किसी देश के सांस्कृतिक विकास और इतिहास को जानने के लिए हमारे लिए उस देश के सांस्कृतिक उपकरणों-कला, दर्शन, धर्म साहित्य आदि से परिचित होना अ्रनिवाये होगा । चूंकि सांस्कृतिक जीवन की पूर्ण एवं सुन्दरतम अभिव्यक्ति साहित्य के माध्यम से ही सम्भव है, इसलिए सामाजिक उपयोगिता के क्षेत्र में साहित्य का दायित्व और भी बढ़ जाता है | इसी तथ्यको ध्यानम रखते हुए साहित्य कौ समाज की प्रतिच्छाया माना गया है । समाज की स्वस्थ एवं ह्वासमुलक सभी तरह की स्थितियों का प्रभाव साहित्य पर पड़ता हैं। इसलिए उसमें जीवन की विविधता का रहना अनिवार्य है। जीवन की इसी अनेकरूपता एवं विविधता का चित्रण साहित्य के विकास का एक गअनिवाये अंग है और नाटक में यह विकास अपनी चरम सीमा को प्राप्त है। विश्व में ऐसा कोई ज्ञान नही, कोई शिल्प और विद्या नहीं, कला, योग और कर्म नहीं जो नाट्य में न देखा जाता हो ।' वैसे तो रेडियो कै प्रसारसे श्राज कल ध्वन्यात्मकं श्रथवा श्रव्यं नारको की विधा का पर्याप्त प्रचार हो रहा है, तो भी मुख्यत' नाटक एक अनुकरणात्मक १. नाट्शास्त्र, न तच्छू तंन तच्छित्प न सा विद्या न सा कला। नस योगी न तत्कर्म यन्नाट्येऽस्मिन्न दश्यते + १-११९।।




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