आचार्य द्विवेदी | Acharya Dwivedy
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
253
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री रामं चरित मानस
सो ०-जो सुमिरत सिधि होड
करी अनुग्रह सोद
मूक होइ बाचाल
जासु कृषं सो दयाल
नील सरोरुह स्याम पर्न
करी सो मम उर धाम
कुद इदु सम
जाहि होन पर
बंदों गुर ` पटर
नेह
देह `
कृज '
गननायक करिवर बदन |
बुद्धिरासि सुभ गुन सदन ॥
पंगु चढ़े गिरिवर गहन ।
द्रवी सकल कलिमल दहन ॥
अरुन वारिज वयन।
सदा छीर सागर सयन ॥
उमारमन क़रुनाअयन |
करो कृपा मदन, मयन ॥
कृपासिंधु नर रूप हरि ।
महा मोह तम 'पंज ज़ासुबचन रबिकर निकर ॥
दौ गुर पद पदुम परागा | सुरुचि वास सरस अनुरागा ॥
अमि मूरि मय चूरनु चारू। समन सकल भव रुज परिवारू ॥
सुकृत सभु तन बिमल बिमूती | मंजुल मंगल मोद् , प्रसूती ॥
जन मन मजु मुकुर मल हरनी । किए तिलकु गुन गन बस करनी ॥
श्री गुर पद नख অলি गन जोती | सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥
दलन मोह, तम सो सुप्रकासू | बड़े भाग उर आवे जासू ॥
उषरं त्रिमल विलोचन ही के | मिं दोष दुख भव रजनी के ॥
सूमाहिं रामचरितं मनि मानिक | गुपुन प्रगट जह जो जहि खानिक |
दो०--जथा सुअंजन अंजि ह॒ग साधक सिद्ध , छुजान |
कौतुक ' देखि सेल वनः मूतल॒ मूरि , निधान ॥ १॥
गुर पद् रज मृदु मंजुल* अंजन । नयन अमिश्र हग दोष विभजन ॥
तेहि करि विमल विवेक विलोचन । बनो रामचरित मव मोचन ॥
बंदों प्रथम महीसुर লো । मोह जनित संसय सब हरना ॥
सुजन समाज सकल गुन ` सानी । करटो प्रनाम् सरम सुवानी ॥
१--प्र ०: मृदु मंजुल रज 1 द्वि० रज मृदु मजुल | तु०, च०ः द्वि० ।
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