आचार्य द्विवेदी | Acharya Dwivedy

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Acharya Dwivedy by निर्मल तालवार - Nirmal Talvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री रामं चरित मानस सो ०-जो सुमिरत सिधि होड करी अनुग्रह सोद मूक होइ बाचाल जासु कृषं सो दयाल नील सरोरुह स्याम पर्न करी सो मम उर धाम कुद इदु सम जाहि होन पर बंदों गुर ` पटर नेह देह ` कृज ' गननायक करिवर बदन | बुद्धिरासि सुभ गुन सदन ॥ पंगु चढ़े गिरिवर गहन । द्रवी सकल कलिमल दहन ॥ अरुन वारिज वयन। सदा छीर सागर सयन ॥ उमारमन क़रुनाअयन | करो कृपा मदन, मयन ॥ कृपासिंधु नर रूप हरि । महा मोह तम 'पंज ज़ासुबचन रबिकर निकर ॥ दौ गुर पद पदुम परागा | सुरुचि वास सरस अनुरागा ॥ अमि मूरि मय चूरनु चारू। समन सकल भव रुज परिवारू ॥ सुकृत सभु तन बिमल बिमूती | मंजुल मंगल मोद्‌ , प्रसूती ॥ जन मन मजु मुकुर मल हरनी । किए तिलकु गुन गन बस करनी ॥ श्री गुर पद नख অলি गन जोती | सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती ॥ दलन मोह, तम सो सुप्रकासू | बड़े भाग उर आवे जासू ॥ उषरं त्रिमल विलोचन ही के | मिं दोष दुख भव रजनी के ॥ सूमाहिं रामचरितं मनि मानिक | गुपुन प्रगट जह जो जहि खानिक | दो०--जथा सुअंजन अंजि ह॒ग साधक सिद्ध , छुजान | कौतुक ' देखि सेल वनः मूतल॒ मूरि , निधान ॥ १॥ गुर पद्‌ रज मृदु मंजुल* अंजन । नयन अमिश्र हग दोष विभजन ॥ तेहि करि विमल विवेक विलोचन । बनो रामचरित मव मोचन ॥ बंदों प्रथम महीसुर লো । मोह जनित संसय सब हरना ॥ सुजन समाज सकल गुन ` सानी । करटो प्रनाम्‌ सरम सुवानी ॥ १--प्र ०: मृदु मंजुल रज 1 द्वि० रज मृदु मजुल | तु०, च०ः द्वि० ।




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