साहित्य-विवेचन | Sahitiya Vivechan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
360
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका १५
स्पष्ट सूचित होता है कि ये साहित्य में राजनीति ही नहीं प्रत्युत तात्कालिक श्रौर
दैनिक राजनीति तथा कार्य-क्रम का नियमन करना चाहते हे । इन्हों कार्य-क्रमो
का अनुसरण करने और न करने में ही ये साहित्य की प्रगतिशोलता श्रौर
श्रप्रगतिज्ीलता का निपटारा करते रहते ह् । यह स्पष्ट है कि एषी परिस्थिति
भे कोई वडी प्रतिभा पनप नहीं सकती श्रौर यह भी स्वाभाविक है कि प्रगतिशौलता
का सेहरा पतिर पर रखने के लिए कुछ लोग बने-बनाए “सरकारी नुस्खों का झाँख
मं दकर सेवन करते रहे ।
सैद्धान्दिक दृष्टि से हमारी झ्ापत्ति यह है कि यह समीक्षा-ओलो किसी
साहित्यिक परम्परा का प्रनुस्तर नहीं करती भ्रौर न किसी साहित्यिक परम्परा का
निर्माण ही कर रही है। यह जीवन के वास्तविक पश्रनुभवों और सम्प्कों की श्रपेक्षा `
पढ़ें पहाए भौर बने-बनाए मतबाद को भ्रधिक प्रोत्साहन देती है। इसको सीमा में
साहित्य के जो समाज-शास्त्रीय विवेचन होते हे वे श्रावश्यकता से बहुत भ्रधिक
समाज-शास्त्रीय हे श्लौर श्रावश्यकता से बहुत कम साहित्यिक । इस कारण माक्संवादी
समीक्षा-पद्धत साहित्य के भावात्मक श्रोर कलात्मक मूल्यों का निरूपण करने में
सेव पश्चात्पद रहतो है ।
यह समीक्षा-पद्धति कवि की समस्त मानवीय चेतना का श्राकलन न करके
केवल उसकी राजनीतिक चेतना का भ्राकलन करती है! इसी कारण इसके निर्णय
प्राय भ्रधरे या एकांगी होते हे । केवल राजनीतिक घरातल पर किसी सी कवि को
कविता नही परली जा सकती, सहान् कवियों की रचना तो श्रौर भी नही | फिर
फिसी काव्य की प्रेरणा के रूप में कौन-सी वास्तविकता काम कर रही थी और उस
पर कवि की प्रतिक्रिया किस प्रकार की हुई है, ये प्रश्न केवल समाज-शास्म्रीय आधार
पर हल नहीं किये जा सकते । यूग की परिस्थितियाँ श्रनेक वेषम्यों को लिये रहती
है, युग की प्रगति कोई सीधी रेखा नही हुआ करती | उन समस्त वंषम्यों के बोच
कवि की चेतना और उसकी प्रवुत्तियो को समझता केवल किसी राजनीतिक या
सामाजिकं मतवाद के सहारे ही सम्भव नही ।
यदि हमने किसी प्रकार कवि या रचिता की प्रेरक परिस्थितिर्यो भ्रौर
वास्तविकता के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को पूरी तरह सम भी लिया, तो क्ण इतना
समझना ही साहित्य-समीक्षा के लिए सब-कुछ है ? यह तो कवि या काव्य की भूमिका-
सान्न हुईं, जो काव्य -समीक्षा का श्रावक्यक श्रम होते हुए भी, सब-कुछ नही है ।
वास्तविक काव्य-सम्रीक्षा यहीं से झारम्भ होती है, यद्यपि राजनीतिक मतवादी उसे
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