विनोबा के विचार | Vinoba Ke Vichar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ विनोबाके विचार
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कृष्णु-भक्तिका रोग
<दुनिया पैदा करें? ब्रह्माजीवी यह इच्छा हुई | इसके अनुसार कारबार
शुरू होनेवाला ही था कि कौन जाने कैसे उनके मनमे आया कि “अपने काम
में मला-जुर बतानेवाला पोई रहे तो बडा मजा रहेगा ।' इसलिए श्रारभमे
उन्होने एक तेज तरार टीक बार गह्ा | और उसे यह अखितयार दिया कि
आगेसे मै जो कुछ गढ़ गा उसवी जाचका काम तुम्हारे जिम्मे रहा। इतनी
तेयारीके बाद ब्ह्माजीने अपना कारसाना चालू किया । ब्रह्माजी एक-एक चीज
बनाते जति श्रौर टीकाकार उसरी चूक दिराङर श्रपनी उपयोगिता सिद्ध करता
जाता । टीकाकारवी जाचपफे सामने कोई चीज बे ऐव टहर ही न पाती । “हाथी
ऊपर नही देस पाता, ऊठ ऊपर ही देसता है। गदह मे चपलता नहीं है,
बदर अत्यत चपल है। यो रीकाकारने श्रपनी टीकके तीर छु ड़ने शुरू
क्ये | ब्रह्मजी वी अक्ल गुम ह गई | फ्रि भी उन्होंने एक श्राखिरी
काशिश कर दखनेवी ठानी ओर अपनी सारी वारीगरी सर्च करके “मनुष्य
गढ़ा | टीकाकार उसे बारीबीस निरफने लगा। अतमे एक चूक निक्ल
ही आईं | “इसवी छातीमे एक सिडबी होनी चाहए थी, जिससे इसके
विचार सब समभ पाते |” ब्ह्माजो बाले--“तुक्के रचा यही मेरी एक चूक
हुई, अब मै ठुमे शकक्रजी के हवाले करता हू |”
यह एक पुरानी कहानी कही पढ़ी थी। इसके बारेमे शक्ा करनेवी
सिप एक ही जगह है | वह यह कि क्द्ानीके वनके अनुसार टीकावार
शक्रजीके हवाले हुआ नहों दीसता। शायद ब्रह्माजीगो उन पर दया
आ गई हो, या शक्रजीने उनपर अपनी शाक्त न आजमाई हा। जो हो,
इतना सच है कि आज उनकी जाति बहुत फेली हुई पाई जाती है। गुलामी-
के जमानेमे वतृ त्व बाबी न रह जाने पर वक्तन्यवों मोका मिलता है।
कामकी बात खत्म हुई कि बातका ही काम रहता है। ओर बोलना ही दे
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