विनोबा के विचार | Vinoba Ke Vichar

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Vinoba Ke Vichar  by महादेव देसाई - Mahadev Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ विनोबाके विचार ४३ + कृष्णु-भक्तिका रोग <दुनिया पैदा करें? ब्रह्माजीवी यह इच्छा हुई | इसके अनुसार कारबार शुरू होनेवाला ही था कि कौन जाने कैसे उनके मनमे आया कि “अपने काम में मला-जुर बतानेवाला पोई रहे तो बडा मजा रहेगा ।' इसलिए श्रारभमे उन्होने एक तेज तरार टीक बार गह्ा | और उसे यह अखितयार दिया कि आगेसे मै जो कुछ गढ़ गा उसवी जाचका काम तुम्हारे जिम्मे रहा। इतनी तेयारीके बाद ब्ह्माजीने अपना कारसाना चालू किया । ब्रह्माजी एक-एक चीज बनाते जति श्रौर टीकाकार उसरी चूक दिराङर श्रपनी उपयोगिता सिद्ध करता जाता । टीकाकारवी जाचपफे सामने कोई चीज बे ऐव टहर ही न पाती । “हाथी ऊपर नही देस पाता, ऊठ ऊपर ही देसता है। गदह मे चपलता नहीं है, बदर अत्यत चपल है। यो रीकाकारने श्रपनी टीकके तीर छु ड़ने शुरू क्ये | ब्रह्मजी वी अक्ल गुम ह गई | फ्रि भी उन्होंने एक श्राखिरी काशिश कर दखनेवी ठानी ओर अपनी सारी वारीगरी सर्च करके “मनुष्य गढ़ा | टीकाकार उसे बारीबीस निरफने लगा। अतमे एक चूक निक्ल ही आईं | “इसवी छातीमे एक सिडबी होनी चाहए थी, जिससे इसके विचार सब समभ पाते |” ब्ह्माजो बाले--“तुक्के रचा यही मेरी एक चूक हुई, अब मै ठुमे शकक्‍रजी के हवाले करता हू |” यह एक पुरानी कहानी कही पढ़ी थी। इसके बारेमे शक्ा करनेवी सिप एक ही जगह है | वह यह कि क्द्ानीके वनके अनुसार टीकावार शक्रजीके हवाले हुआ नहों दीसता। शायद ब्रह्माजीगो उन पर दया आ गई हो, या शक्रजीने उनपर अपनी शाक्त न आजमाई हा। जो हो, इतना सच है कि आज उनकी जाति बहुत फेली हुई पाई जाती है। गुलामी- के जमानेमे वतृ त्व बाबी न रह जाने पर वक्‍तन्यवों मोका मिलता है। कामकी बात खत्म हुई कि बातका ही काम रहता है। ओर बोलना ही दे




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