घूंघट | Ghunghat

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Ghunghat by भगवत स्वरुप जी जैन भगवत - Bhagwat Swaroop Jee Jain Bhagwat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १६ | एक दिन जाते है भित हस सराकके पर्देमे सव- सारी दुनिया जिसकी सादिम बह प्रमु पर्दमेद !! भोज०--भई वाह ! मिष्टर दिल फड़क ! बीबी क्या है--पेदाइशी एडबोकेट है। टेसु०--(मंह बनाकर) मार डाला ! मुझसे पूछो पर्दे की बात-- जब हुए पैदा तो घर बच्चों तलक पर्दा रहा ! मर गए तो जिस्म पर फौरन कफ़न डाला गया !! फिर बचा पदेंसे क्या इसको मुलादिजा कीजिए बाद्‌ मे जो दिल कह उस बातको कह लीजिए ॥ गड़बड़०--तभी तो बाबू साहब बी०ए० पास ही नहीं, बीबी पास भी हैं! घिच०--मगर इस रेल्वे-पार्सल के भीतर क्या भरा है, यह तो पता ही नहीं ! भोजन०--अरे भाई ! ज़रूर कुछ दाल में काला है, तभी ! नहीं, मु ह न खोलती--मजाल है ! मदं की बात श्रौर बह भी न मानी जाय! मि०--हत्तेरी ऐसी कम तैसी ! बस, अब बर्दाश्त नहीं (-- मदं था सर्दानगी की ताब से पुरजोश था! पर शराफ़तके सबब अबतक रहा खामोश था !! अब मिटाकर ही रहूँगा पदये बेहदगी! मैंदिखाऊँगा तुके अब फेशनेबुल जिंदगी !! स्त्री०--( करुण-ख्र में ) मेरे देवता ! मुझे माफ़ करो




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