गांधीवाद : समाजवाद | Gandhiwad : Samaajwad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ ७ ; वातनाओं को बढ़ाता हो, तो उसका एक ही परिणाम होगा ओर वह यह कि स्वतंत्रता का दिन और और आगे ठिलता चला जायगा। यह तिद्धान्त एक सचई है । इसे हम जल्द समभे; या देर से सम, समभना तो पड़ेगा दी । जल्दी समभने मे कल्याण है, देर से समने मं जोखिम है, क्याकि हो सकता है, हम इतनो देर मं समभे कि उसके वाद्‌ समते हए. भी हाथ मल्कर रेह जाना पडे बाजी हाथ से निकल चुके । সী यह तो निर्विवाद है कि संयमी, इन्द्रियजित ओर सादा जीवन बिताने वाली जनता के बल पर ही देश खतंत्र ओर समृद्ध बन सकंगा । ६२ | अत्र जिनकी बुद्धि या हृदय गांधीजी के विचारों तथा मार्गों के प्रति विशेष आकृष्ट होता है, उनसे दो-चार बातें / कहना चाहता हूँ । गाधीजी के विचारों--अथवा कहिए, पद्धतियों-में कुछ तत्त्व तो ऐसे हैं, जो अचल कहे जा सकते है, जो लोग उनके जीवन या उपदेश से प्रेरणा या मागे-दशन चाहते हैं, उनके लिए वे आचरणाय हैं । इस प्रकार का पहला अ्रचल-तत्व यह है, कि जीवन की सभी समस्या्रो का विचार और हल सत्य, अहिंसा ओर सेवा द्वारा ही करने का प्रयत्न होना चाहिए । नि इसमें सत्य, श्रहिंसा ओर सेवा, ये तीन अंग या मर्यादायें कही गईं हैं। इनका क्रमशः अलग अलग विचार करना ठीक होगा । सत्य! में नीचे लिखी बातों का समावेश होता हे--पूबग्रह से दूषित ने होना, किन्तु सत्य को मानने के लिए सदा तैयार रहना, ओर इस कारण असत्य से, फिर वह कितना ही पुराना ओर बहुमान्य क्यों न हो, ओर उसमें हम कितने ही आगे क्योंन बढ़ चुके हों, वापस लोटने में भय ओर लज्जा न रखना, ओर साथ ही, जिस समय जिस बात के बारे मे सत्यता का विश्वास हो, उसके लिए श्रपना सवंस्व खोने को तैयार रहना । (यहिसाः- इसका श्रथ होता हे हर प्रकार के श्रधमं का--गांधीजी




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