कवित्त - रत्नाकर | Kavitt - Ratnakar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
327
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कवित्त-रत्नाकर
तथा मल्हम-पट्ी को चर्चा ! वचन-वक्रता बड़ी सुन्दर होती है, कितु वह् “फारि
फारि खाए” बिना भी प्रदर्शित की जा सकती थी। 'खंडिता के ्रन्य उदा-
हरणो में श्रधिक सहृदयता से काम लिया गया है ।
ह वचन-विदग्धा” के वर्णान में कभी-कभी व्यंजना से श्रपू्व॑ सहायता
मिलती है, पर सेनापति ने इसके वर्शान में प्रायः इलेषालंकार से सहायता ली है ।
इसके कुछ उदाहरण पहली तरंग में मिलते हैं! और उनमें शाब्दिक क्रीडाकी
ही प्रधानता है । किसी-किसी छंद मे श्रदलीलत्व' दोष भी श्रा गया है। 'अदली-
लत्व' के संबंध में यह कह देना श्रप्रासंगिक न होगा कि वह सेनापति के म्मुंगार-
वयुन मे _ बहुत कम पाया जाता दै। वह् केवल पहली तरंग मे ही বিন
स्थलों पर देखा जाता है । कवि वहाँ पर श्लेष लिखने में तत्पर दिखलाई पडता
है अतएव उसे अन्य किसी बात की चिता नहीं रहती है। कहीं-कहीं इ्लेष का
मोह इतना ग्रबल हो जाता है कि उसे भद्दी बात कह देने में भी संकोच नहीं
होता है । ऐसी ही भही तथा रसाभासपूणं उवितियों को देखकर भ्राजकल
कुछ शिक्षित तथा शिष्ट किन्तु साहित्य से अधिक परिचित न रहने वाले व्यक्ति.
श्रृंगार रस को उपेक्षा की दृष्टि से देखा करते हैं। इनमें से कोई तो कुछ उम्रता
के साथ उसका विरोध भी करते हैं ।
रोतिकाल के श्रन्य कवियों की भाँति सेनापति ने भी 'परकीया' का ही
विशेष चित्रण किया किया है, किन्तु वे 'स्वकीया” की महत्ता को भी स्वीकार
करते थे। “रामायण वर्शान' में उन्होंने राम के एक नारी-ब्नत पर बहुत ज़ोर
दिया है और बड़े उत्साह के साथ “दाम्पत्य रति” का चित्रण किया है। दूसरी
तरंग में भी जहाँ कहीं उसे चित्रित किया गया है, वहाँ श्रपूवं सफलता मिली
है। श्रौढा स्वाधीनपतिका के इस वर्णन मेँ 'स्वकीया” की सुकुमार भावना को
देखिए-
फूलन सो बाल की बनाई गुही बेनी लाल,
भाल दीनी बंदी मृगमद की असित है।
अंग अंग भूषन बनाइ ब्रज-भूषन जू,
बीरी निज करके खवाई श्रति हित, दै,
१, पहली तरंग, छंद ७१, ७८, ८१
२. पहली तरंग, छंद ९४
এ
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