नवक्षितिज | Nav-kshitij

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Nav-kshitij by हंसराज रहबर - Hansraj Rahabar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मगर इस पेशे मे उसे जो सफछता प्राप्त हुईं, उसकी याद अब तक बाकी है । उका कानून सम्बन्धौ ज्ञान इतना बढा हुआ था कि योग्य से योग्य जज को भी उसकी लिखी अपील रहं करने का साहस न पडता था | साधारण वकीले की तो बात ही क्या, विलायत पास बैरिस्टर भी उमसे कानूनी मशविरा लेने आया करते थे। कौन जज ओर कौन वकील उसे नहीं जौनता था? सरकार के मत्री तक उससे परिचय प्राप्त कर लेना गौरव की बात समझते थे। फिर इस पेशे से उसने डेढ डेढ दो दो हजार रुपये महीना कमाये है | यह ख्याति और यह आमदनी सिर्फ उसी के माम्य मे आयी थी, वरना दुनैया में इतने अपालि- नवीस बसते है, पर कोई उनकी बात तक नहीं पूछता । एक यही बात क्यों, उप्तकी हरेक बात में विशेषता रहती है। इस उम्र मे यह स्वास्थ्य चौदह बार कैद होने के बावजूद, आजादी की यह भावना और भाषण करने का यह प्रमावली ठग कया विशेषता के चिन्ह नहीं? और फिर एक दिन सुबह सैर करते समय राजाराम ने बताया था कि ऊन लरेष बाग मे जो शेकडो लोग छुब॒ह छुबह सेर करने जति है, वे सब उसका अनुसरण कर रहे दै, क्यो राजाराम उन चन्द नौजवानों में से एक है, जिन्होने पहले लाहौर में सैर का रिवाज डाला | अतीत की बात छिड जाने पर शिक्षा का जिक भी छिड जाता है। तो वह बताया करता है, कि उनके जमाने की शिक्षा इतनी सबोगीण और सम्पूर्ण थी, कि मात्र चार किताबे पढकर आदमी को दुनिया के प्रत्येक विषय का पूर्ण ज्ञान हो जाता था | और जो आदमी वे चार पुस्तकें पढ़ लेता था वह या तो बादशाह बनता था या वजीर | राजाराम ने भी वे चार किताबे पढ़ रखी हैं, और वह उनके नाम अक्सर बताया करता है--गुलिस्तो, बोस्तों, इशाये माधोराम ओर हरकरण । एक बार किसी ने पूछा-- राजारामजी, जब आपने य चारों पुस्तकें पढ़ रखी है, तो फिर क्‍या बति दहै कै अपि न ती बादशाह बने और न वजीर १ ! इस पर राजाराम ने सप्राटू-षुर्भ गौरव से उत्तर दिया था--राजाराम उस ब्रिटिश सरकार का बागी हैं जिप्तके राज में कभी सूरज नहीं इबता ओर बादशाह का बागी किसी तरह वादशाह से कम नहीं। शेखसादी ने फर- माया है-- “खिलाफे रायछुल्ता राय ज्जुस्तन, बखूने खेश बासद्‌ दस्त शुस्तन | ? १०




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