मन मयूर | Man Mayur

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Man Mayur by अलपूर्णानंद -Alpurnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मन-मयूर উস সি পচ রন লোক পথ্য भ कु ०५ ०५५००४७ জি সি পাস জপ পপ ই জি অর্ধ পলা পাপা সপ লো সি পি সস লন পপি ০০ মিসস সি ইসি नसमभें, रवइको रबड़ीका पुल्लिंग न समभें, और भावजकों अगर भाभी पुकारते हों तो बड़े भाईको भाभा न पुकारें । मेरी इन वातोंकों पढ़ कर मुझे कोई बौडम पुकारे तो में उसे क्षमा कर दूँगा, जैसे सूथ्य उन लोगोंको क्षमा कर देता है जो उसे पतंग पुकारते हैं । मेरा घरेलू जीवन इस प्रथमे बड़ा सुखमयहै कि घरकी मालकिन महोदया मुभे काठ-कबाड समभ कर अधिक छेडती नहीं । हाँ, यह ज़रूर है कि मेरा पति- परमेरवर-पन वे बहुत पनपने नहीं देतीं । पर इसका यह अर्थ नहीं कि हम-दोकी दुूनियामें कहीं कोई दरार है। जीवनकी एकरसताको दूर करने के लिए कभी काई भडप हो जाय--वह दूसरी बात है। यों हम दोनों, गणित को व्यर्थ करते हुए, १+ १-१ ही हैं । आठ |




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