हिन्दू - विवाह की उत्पत्ति और विकास | Hindu Vivah Ki Utpatti Aur Vikas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) कमी का कारण १३१; कन्याप्नों का बाल - विवाह १३२; गिलम्ब स विवाह करने में पाप की उद्धावना १३५; मुसलमानी काल में विवाह की श्रायु १३६; यूरोप के अन्य देशों में विवाह - वय १३७; दतंमाके भ्रवस्था १३८ । (घ) विवाह के कुछ प्रतिबन्धक १४० ( १ ) सपिष्डता--सपिरड का अथं १४०; सपिरुडता को सीमा १४१; इस सम्बन्ध मे श्राचार्यो के विभिन मत १४४; सपिरएड मे विवाहन करने के कारणं १४५; ( २) सगोत्रता--गोत्र शव्द का अथं १४६; प्रधान गोत्र १४७; सगोत्र मे विवाह व करने का कारणं १४८; ( ३ ) सप्रवरता-- सप्रवर का प्रथं १५०; गोत्र भौर प्रवर मे भेद १५०; सप्रवर में विवाह न करने का कारण १५१, (४ ) अन्य प्रतिबन्धक--१५१: गोत्र के बाहुर विवाह के सम्बन्ध में पश्चिमी प्रावा्ों के विभिन्‍न मत १५२। (ङ) विवाह में शुल्क-ग्रहण १५५ प्राचीव भारत में तिलक तथा दहेज की प्रथा का प्रभाव १५५ ( ३) तिलक तथा दहेज को प्रथा की उत्पत्ति १५७, वर्तमान प्रवस्था' १५८, बुराइयाँ १५८, ( २) कन्या-शुल्क १५६ । (च) विवाह सें ज्योतिष का स्थान १६० (१) विवाह के लिये शुभ मुहूर्त १६०, विवाह का सम1१६३, ( २) विवाह मे जन्मकुण्डली का स्थानं १६४, जन्मकुण्डली म विभिन्नं विषयों पर विचार १६५, (३) विवाह के प्रबन्धक एवं कन्यादान कै प्रधिकारो १६६ । (५) पाँचदाँ अध्याय-विवाह - संस्कार १७२--२०६ वैवाहिक विधि का क्रमिक विकास १७२, वेदों में वेवाहिक विधि १७४, सूत्रकाल में विवाह को विधि १७८, वैवाहिक विधि-विधानों को सूची १७६, पद्धति श्रौर प्रयोग के समय मे वैवाहिक - विधि १८१, विवाह सम्बन्धी कुछ प्रधान विधियाँ १०५, (१) वाकदान १८५, (२ ) मृदाहरण १८७, (३) घटो स्थापन १८८, ( ४ ) बधुगृहगमन १८८, (५) मधुपक १८६, (६ ) समञ्जन १९०, ( ७ ) गोत्रोच्चार १६०, ( ८ ) कन्यादान १६०




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